स्टोरी

अपनी नवजात बेटी से मिलना मेरे लिए किसी सेलिब्रिटी से मिलने जैसा था. मैं लंबे समय उससे मिलने के बारे में सोच रही थी. मुझे ऐसा लगा कि जैसे मैं उसे पहले से ही जानती हूं.

मैंने उसकी आंखों में भी नहीं देखा और मुझे उससे प्यार हो गया. उस वक़्त मैं इतना ही जानती थी कि मैं उसकी सुरक्षा के लिए हर संभव कोशिश करूंगी. भले ही तब मुझे ये नहीं पता था कि मैं यही चीज़ें अपने ख़ुद के लिए कैसे करूंगी.

2018 की सर्दियों में मुझे गर्भवती होने के बारे में पता चला. मैं और मेरा ब्वॉयफ्रेंड हैरान थे और ये हमारे लिए एक झटके से कम नहीं था.

हम दोनों एक साल से भी कम समय से संबंध में थे. हम साथ भी नहीं रहते थे और मैं अपने गुज़ारे के लिए बहुत मुश्किल से कमा पाती थी.

इन सब के साथ एक और समस्या ये थी कि मैं पिछले दो सालों से मानसिक बीमारी से जूझ रही थी.

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गर्भधारण के बारे में सुनकर जब मैं और मेरा ब्वॉयफ्रेंड थोड़ा संभले तो हमने बच्चे को जन्म देने का फ़ैसला किया. हालांकि, उस वक़्त हमने मां-बाप बनने के बारे में कुछ नहीं सोचा था लेकिन हम दोनों को बच्चों से प्यार था और हम एक परिवार बनाना चाहते थे.

इसलिए, थोड़े डर, उत्सुकता और असहजता के साथ मैंने मां बनने की यात्रा शुरू की.

बॉर्डर्लिन पर्सेनेलिटी डिसऑर्डर

एक साल पहले 26 साल की उम्र में मुझे अपनी बीमारी बॉर्डर्लिन पर्सेनेलिटी डिसऑर्डर (बीपीडी) के बारे में पता चला था. इसे इमोशनल अनस्टेबल पर्सनेलिटी डिसऑर्डर (भावनात्मक रूप से अस्थिर व्यक्तित्व विकार) भी कहते हैं.

बीपीडी अक्सर नकारात्मक सोच, आवेगी व्यवहार और दूसरों के साथ भावुक लेकिन अस्थिर संबंधों से जुड़ा होता है. साल 2014 के एक सर्वेक्षण के मुताबिक ब्रिटेन के दो प्रतिशत लोग इससे प्रभावित हैं.

बाहर से मैं बहुत शांत लगती हूं लेकिन अंदर से मेरे दिमाग़ के कई हिस्सों में भावनात्मक लड़ाई चल रही होती है.

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मेरी ज़िंदगी में जो कुछ भी अच्छा या सकारात्मक होता है जैसे एक सही लड़के से मिलना या अपनी मनचाही नौकरी पाना, तो मुझे नकारात्मक ख़याल आने लगते हैं. जैसे कि मैं इस सबके लायक नहीं हूं या ये सब कुछ इतना भी अच्छा नहीं है, अपने आपको के बेवकूफ़ मत बनाओ.

जिस साल मुझे बीपीडी का पता चला उसी साल मेरे साथ यौन शोषण भी हुआ. मैं 15 साल की उम्र से ख़ुद को नुक़सान पहुंचाती रही हूं और यौन शोषण के बाद मैं ख़ुद को काटने और जलाने भी लगी.

मैंने उन बुरी यादों को भुलाने के लिए कैजुअल सेक्स, बहुत ज़्यादा शराब पीना शुरू कर दिया और किसी पेशेवर की मदद लेने को नकारती रही.

उतार-चढ़ाव से भरे अनुभव

मेरा शरीर मेरी शर्म को बाहर निकालने के लिए एक कैनवास बन गया, इस कारण ये विचार एक झटके की तरह था कि यही शरीर एक नई जान को जन्म देने जा रहा है.

जब मैं पहली बार अपने प्रेमी से मिली, मैं पुरुषों से नफ़रत को लेकर मज़ाक किया करती थी. इन चीज़ों को मज़ाक का रूप देकर मैंने ख़ुद को संभालने की कोशिश करती थी.

उसने आखिरकार मुझसे पूछ लिया कि मेरी इस कड़वाहट का कारण क्या है. ये सुनते ही मेरे अंदर जैसे कुछ टूट गया और मैंने उसे अपने साथ हुई उस घटना के बारे में बताया. मुझे पता था कि मैं उस पर भरोसा कर सकती हूं और ये एक ग़ज़ब का अहसास था.

जैसे-जै़से मेरी गर्भावस्था आगे बढ़ी, मुझे असल उतार-चढ़ाव का अनुभव हुआ. कई बार में बहुत ख़ुश रही. मेरे ब्वॉयफ्रेंड ने बहुत प्यार दिया और मेरा ध्यान रखा. उसने मेरे बदलते हुए मूड के साथ तालमेल बैठाया. लेकिन, बुरे दिनों में जैसे सब कुछ बिगड़ गया.

इसकी वजह थी एक सहकर्मी की कही बात. उसने बस यही कहा था कि मेरा बेबी बम्प (गर्भवास्था में पेट का उभार) छोटा है और इसे सुनकर मैं बाथरूम मे जाकर रोने लगी.

मैं सोचने लगी कि क्या मेरा शरीर मेरे बच्चे को सुरक्षित नहीं रख सकता? क्या ये एक बुरी मां होने की निशानी है?

ये बेवकूफ़ाना लग सकता है लेकिन मेरा दिमाग़ सामान्य तरीक़े से नहीं सोचता.

मैं इन्हीं बातों में फंस गई और लोगों को बताने लगी कि मेरे साथ क्या हो रहा है. मुझे इस पर शर्म आने लगी कि मैं वैसी मां नहीं बनी जैसा मैंने सोचा था, जोशीली, उत्साहित और ख़ुश.

लगभग छह महीनों के बाद मेरी हालत बद से बदतर हो गई. मिडवाइफ के साथ होने पर या तो मैं घुटन महसूस करती या अपनी सारी चिंताओं को ख़त्म कर देती.

मानसिक स्वास्थ्य से जूझती महिलाएं

मैं गर्भधारण के तीन महीने बाद ही एक काउंसलर को दिखाना शुरू कर दिया था. मैंने फ़ैसला किया क अब मेरा ब्वॉयफ्रेंड अपनी बात रखेगा कि कैसे मेरी बीमारी उसे प्रभावित करती है, वो मुझे लेकर कितनी चिंता करता है और मुझे उसकी कितना ज़्यादा ज़रूरत है.

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ऐसा नहीं है कि सिर्फ़ मेरी जैसी मांएं ही गर्भधारण और प्रसव के बाद मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करती हैं. बीबीसी लाइव 5 के 2017 के एक सर्वेक्षण के मुताबिक़ एक तिहाई से ज़्यादा नई मांएं मातृत्व को लेकर मानसिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं को झेलती हैं.

लेकिन, जैसे ही मैंने अपने पार्टनर की मदद ली सब कुछ बदल गया. मैंने लोगों से मिलना-जुलना, अपने आसपास एक सपोर्ट नेटवर्क बनाना और अपनी ही जैसी दूसरी मांओं से मिलना शुरू किया.

गर्भावस्था के बचे हुए दिन बहुत आसान तो नहीं थे लेकिन उनमें रहा जा सकता था.

प्रसव के बाद के शुरुआती कुछ हफ़्ते भावनाओं से ओतप्रोत थे. मैं बहुत कम सो पाती थी क्योंकि मुझे देखना था कि मेरी बेटी सांस ले रही है या नहीं.

हमने अस्पताल से आते हुए एक टैक्सी ली थी और वो टैक्सी जब भी उछलती तो मुझे उसकी जान को ख़तरा लगता. उसे लेकर बहुत-सी बातें ध्यान रखनी पड़ती थीं जैसे कि दूध पिलाना, कमरे का तापमान सही रखना, उसे पालने में घुटन न हो ये देखना. उसे लेकर होने वाली चिंता दूर करने का एक ही तरीका था कि उसके साथ चौबीसों घंटों रहो.

अपने अंदर के प्यार का अनुभव

धीरे-धीरे मेरे और मेरी बेटी के बीच लगाव बढ़ने लगा. जब मैंने उसके ज़िंदा रहने को लेकर बहुत ज़्यादा घबराना छोड़ दिया तब मैंने उसे जानना शुरू किया. ख़ासतौर पर उन लंबी रातों के दौरान जब हम दोनों जगे रहते थे.

मातृत्व अवकाश के दौरान महसूस हो रहे अकेलेपन को दूर करने के लिए मैंने घर से निकलने के तरीक़े खोजे जैसे प्लेग्रुप में, सुपरमार्केट में जाना और पार्क में सैर पर निकल जाना.

मां बनने से पहले चिंता मुझे घर के अंदर ही बंद रखती थी लेकिन अब इसने मुझे बाहरी दुनिया को देखने के लिए प्रेरित किया.

धीरे-धीरे मैंने नए दोस्त बनाए. उनमें सबसे खास थीं रोज़ी और मरियम जिनसे मैं इंस्टाग्राम पर मिली थी.

मेरे ब्वॉयफ्रेंड के साथ भी मेरा रिश्ता और अच्छा होता चला गया. हम एक मजबूत टीम बन गए. लेकिन, कभी-कभी आप दोनों ही बहुत थके होते हैं और फिर बहस को रोक पाना मुश्किल होता है.

एक बार पार्क में एक छोटी-सी बात पर हमारे बीच झगड़ा हो गया था और मैं चिल्लाकर वहां से चली गई. बच्चे को मैंने उसके पास ही छोड़ दिया.

थोड़ी देर बाद मुझे लगा कि जैसे कोई मेरे पीछे आ रहा है. देखा तो मेरा ब्वॉयफ्रेंड था. उसने कहा कि तुम नैपी वाला बैग लेकर भाग गईं. ये सुनकर हम दोनों ही हंस पड़े कि हमारी ये नई दुनिया कितनी मज़ाकिया है. हम दोनों ही झगड़ा भूल गए.

जब मैंने ये लिखा तो मुझे मां बने ज़्यादा समय नहीं हुआ था (प्रसव के 10 महीने बाद) लेकिन मैं इतना कह सकती हूं कि इसने मुझे खुद को इस तरह देखना सिखाया जो मुझे संभव नहीं लगता था.

अब ज़्यादा चीजों फ़िक्र है क्योंकि मेरा एक परिवार है. मैंने सीखा था कि मानसिक बीमारियां ज़ल्दी ठीक नहीं होती. इनमें लचीलापन होता है और आपकी ज़िंदगी बदलने के साथ ये भी बदलती जाती हैं.

एक समय ऐसा था जब मेरी बीमारी ही मेरा व्यक्तित्व, मेरी पहचान बन गई थी. लेकिन, मां बनने ने मुझे सिखाया कि आप बदलेंगे, आप स्वीकार करेंगे और आप खुद को बनाए रख पाएंगे.

अपनी बेटी को प्यार करते हुए धीरे-धीरे मैंने खुद को एक नई रोशनी में देखा. मैं सिर्फ़ खुद को नुक़सान पहुंचाने वाली और ज़ख़्मों से भरी हुई नहीं हूं. मैं एक काबिल व्यक्ति हूं, जिसके पास देने के लिए बहुत सारा प्यार है. इस सबसे ऊपर, मैं एक मां हूं.

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