🌹कोरोना से मुलाक़ात 🌹
लोकडौन शुरू हुए दो महीने बीत चुके थे और मैं अपने क्लिनिक नहीं जा रहा था ।लेकिन धीरे धीरे कुछ ढील मिलने पर और अपने मरीज़ों के बार बार आग्रह पर मैंने क्लिनिक जाने का निर्णय ले लिया ।हालाँकि मेरा परिवार ये बिल्कुल नहीं चाहता था ।उनका मानना था की मैं ७०वर्ष का हूँ और मुझे गुर्दे की बीमारी भी है इसलिए मुझे नहीं जाना चाहिये ।
लेकिन मेरे अन्दर बैठा चिकित्सक मुझे अपना कर्म करने के लिए उकसा रहा था । चिकित्सक ही कोरोना से डरेगा तो फिर एक आम नागरिक का क्या होगा ।मन में यही दोहराता रहता की कोरोना से डरना नहीं है बल्कि कोरोना से लड़ना है ।तो दोस्तों यही सोच कर मैं अपने हथियारों से सुसज्जित हो कर जिसमें सिर पर टोपी ,एन -९५ मास्क,दस्ताने ,गाउन और चेहरे को ढकने की शील्ड शामिल थी ,पहन कर कोरोना के रणखेत्र में कूद पड़ा ।
जैसे अपने शत्रु से युद्ध करने के लिए आपको उसकी पूरी जानकारी रखनी होती है ।मैंने भी कोरोना के बारे में विस्तृत जानकारी हासिल की और अपने आप को उस युद्ध के लिए पूरा तैयार किया । अब मुझे इंतज़ार था कोरोना से एक मुलाक़ात का जिससे मैं उससे पूछ सकूँ की जो अन गिनित मासूम लोगों की जाने ली हैं ।उन्होंने उसका क्या बिगाड़ा था ।
आख़िर वो दिन भी आ गया जब मुझे और कोरोना को आमने सामने होना था । वो एक मरीज़ के साथ चिपक कर चोरी चोरी मेरे क्लिनिक में प्रवेश कर चुका था ।मैं उस मरीज़ के मासूम चेहरे को देख कर समझ चुका था की इसको कोरोना ने अपने वश में कर रखा है ।मुझे एसा महसूस हो रहा था की कोरोना भी मुझ से मुलाक़ात करने के लिए उतना ही बेचेनहैजितना की मैं ।
अब कोरोना मेरे सामने था और मैं कोरोना के सामने ।हमारे बीचमे एक पारदर्शी पर्दा था जो मैंने अपने बचाव के लिए अपने केबिन में लगा रखा था ये बात शायद कोरोना को अच्छीनहीं लग रही थी ।वो इस ताक मेंथा की कब मैंअपनी लक्ष्मण रेखा से बाहर निकलूँ और वो मुझे दबोच ले ।
वो कोरोना दानव अपनी पूरी कोशिश में था की मुझे अपना शिकार बना ले ।मैं अभी इस दृष्टांत को अभी यहीं विराम देता हूँ और आपको उस मरीज़ के बारे में थोड़ी सी जानकारी दे दूँ ।
उस मरीज़ की हालत गम्भीर होने की वजह से मैंने उसे गुड़गाँव के फ़ोरतिस हस्पताल भेज दिया ।जहाँ उसकी कोरोना की जाँच पोसिटिव पाई गई और उसे कोविड हस्पताल मानेसर मे भेज दिया गया ।जहाँ वो आइ सी यु में कोरोना से लगातार युद्ध कर रहा है ।
उसके बाद सब ठीक चल रहा था और मैं अपने घर पर करोंटिन में था ।
इसके ठीक पाँच दिन के बाद मेरे शरीर में दर्दे होने लगी और बुख़ार आने लगा ।जो शुरू में 99 डिग्री और फिर 102 डिग्री तक जाने लगा ।किसी भी दवा का कोई असर नहीं हो रहा था ।बुख़ार को चार दिन हो गए थे और उतरने का नाम नहीं ले रहा था ।
अब मैं थोड़ा चिन्तितहोने लगा । मैंने फ़ैसला किया की अब जाँच करवानी चाहिए ।मैंने अपना रक्त की जाँच करवाई तो उसमें टैफोईड की रिपोर्ट पोसिटिव आइ और मैने अपना उपचार शुरू कर दिया ।लेकिन मैं संतुष्ट नहीं था ।मुझे कोरोना से हुई कुछ दिन पहले की मुलाक़ात याद आ रही थी ।अब मैंने अपने कोरोना की जाँच का भी निर्णय लिया और अपनी जाँच करवाई ।
अब शुरू हुआ रिपोर्ट के परिणाम का इंतज़ार ।इतना तो मैंने कभी अपनी परीक्षा के परिणाम आने का इंतज़ार भी नहीं किया था ।एक एक पल मेरे लिए एक युग के समान प्रतीत हो रहा था ।एक तरफ़ तो मैं अपने परिवार के सदस्यों से उचित दूरी बनाने पर विवश था और दूसरी तरफ़ रिपोर्ट को ले कर चिंता बनी हुई थी ।उस रात मैं सो नहीं पाया ।मुझे अगली सूबह का इंतज़ार था।वो सूबह जो मेरे जीवन में एक बहुत बड़ा बदलाव ला सकती थी ।
मैं देख पा रहा था अपने परिवार के सदस्यों के सहमे हुए चेहरे ।मानो किसी ने उनकी मुस्कान छीन ली हो ।
मेरी 6 वर्ष की पोती को ये बात समझ नहीं पा रही थी की उसको उसके दादू से दुर रहने के लिए क्यों कहा जा रहा है ।उसका मासूम दिल ये मानने के लिए तैयार नहीं था की बुख़ार तो दादु को पहले भी कितनी बार आया लेकिन उसे दादु से दूर रहने को किसी ने नहीं कहा ।वो कोरोना के क़हर से बिल्कुल अनजान थी ।मुझे अपने ईश्वर पर पूर्ण विश्वास था और इसी विश्वास की वजह से अभी तक अपना मानसिक संतुलन बनाए हुआ था ।
शायद ईश्वर मेरी अभी और परीक्षा लेना चाहते थे ।अगले दिन जब रिपोर्ट आइ तो घर में सभी के चेहरों का रंग उड़ गया ।रिपोर्ट पोसिटिव थी ।अब मुझे घर के बेसमेंट मे रहने का इंतज़ाम कर दिया गया ।जहां मैं बिल्कुल अकेला था और मुझे घूरतीं हुई दिवारें और छत थी ।
मैंने कोविड 19 पोसिटिव का उपचार प्रोटोकोल शुरू कर दिया ।लेकिन कोई भी दवा काम नहीं कर रही थी ।और बुख़ार लगातार बढ़ रहा था ।ये शायद पहली बार हो रहा था की मैं खुद चिकित्सक होते हुए भी अपना बुख़ार नियंत्रण नहीं कर पा रहा था ।
इतना असहआय मैंने अपने आपको कभी महसूस नहीं किया था ।
मेरे मुँह का स्वाद ग़ायब हो गया था ।और भूख प्यास नहीं लग रही थी ।कुछ भी खाने की चीज़ को देख कर उल्टी करने का मन करता था ।
बुख़ार का 11 वाँ दिन और मेरी हालत बहुत ही दयनीय थी ।घर के सदस्यों ने निर्णय लिया की अब मुझे घर नहीं रखना चाहिए ।और मुझे दिल्ली के गंगा राम हस्पताल में भर्ती कर दिया गया ।
यहाँ आ कर शुरू हुआ एक और नया अध्याय कोरोना के युद्ध का ।अब मैं अकेला नहीं लड़ रहा था ।अब मेरा साथ दे रहे थे हस्पताल के 6 डाक्टर -दो डाक्टर कोविद टीम से ,दो छाती रोग विशेषज्ञ और दो डाक्टर गुर्दा विभाग से थे और उनका साथ दे रहे थे नर्सिंग स्टाफ़ ।
मुझे यहाँ आए चार दिन हो गए थे और मेरी हालत मेंसुधार होने के कोई लक्षण नज़र नहीं आ रहे थे ।मेरा खून का स्तर नीचे गिर रहा था ।और गुर्दे की रिपोर्ट भी ख़राब होती जा रही थी ।अब मेरा धैर्य मेरा साथ छोड़ रहा था ।मैं अपने ईश्वर से इस कोरोना से छुटकारा मिलने के लिए लगातार सम्पर्क बना रहा था ।मैं जब बहुत ही चिंतित होने लगा तो अचानकमुझे श्री तुलसी दास जी की लिखी एक चोपाई याद आ गयी जिसने मेरे अन्दर की सभी चिंता दूर कर दी ।
चिंता से चतुराई घटे ।
घटे रूप और ज्ञान ।
चिंता बड़ी आभागनी
चिंता चिता समान ।।
तुलसी भरोसे राम के
निर्भय हो कर सोए ।
अनहोनी होनी नहीं
होनी होए सो होय ।।
बुख़ार का 15 वाँ दिन । अचानक मुझे ज़ोरों की ठंड लगने लगी ।और मैं दो घंटे तक बिस्तर में कांप रहा था ।ए सी बंद कर दिया गया और मेरे ऊप्पर दो कम्बलडाले गए ।दो घंटे के बाद मुझे पहली बार पसीने आ रहे थे ।यहाँ तक की मेरा पूरा बिस्तर गीला हो चुका था ।लेकिन फिर ज़ैसे कोई चमत्कार हो गया हो ।मुझे एसा लगने लगा जैसे मेरा शरीर एक दम से हल्का हो गया हो ।मेरे अन्दर एक अजब सी लहर हिलोरें मार रही थी ।जैसे मुझे किसी क़ैद से आज़ाद किया जा रहा था ।
शायद पहली बार कोरोना का दानव अपने आप को मेरी ईश्वर भक्ति और मेरी इच्छा शक्ति के आगे अपनी हार मान ने को तैयार हो चुका था ।
इसके बाद 3 दिन और हस्पताल मे रहा और मुझे इस दोरान कोई बुख़ार नहींआया । लेकिन कोरोना जाते जाते मेरा खाना पीना बंद कर गया ।मैं काफ़ी कमज़ोरी महसूस कर रहा था ।और मुझे लग रहा था ज़ैसे मैंने ये युद्ध शारीरिक ,मानसिक और अध्यतिमिक स्तर पर लड़ा हो ।
3 दिनहो गए हैं और मैं हस्पताल से छुट्टी ले कर घर आ गयाहूँ ।
आप सभी के शुभ संदेश पढ़ कर अत्यंत हर्ष का अनुभव कर रहा हूँ ।
मैं अकेला इस युद्ध मे नहीं लड़ रहा था ।मुझे अब अहसास हो रहा है की मेरा ईश्वर और मेरे ईश्वर केप्रतीनिधि
यानी आप सब लोग भी मेरे साथ युद्ध मे शामिल थे ।
इसके लिए मैं अपने सभी चाहने वालों का दिल से आभार प्रगट करना चाहता हूँ ।
मेरे परिवार के सदस्यों की हिम्मत की भी मुझे प्रशंशा करनी है की उनहों ने इस कष्ट की घड़ी में मेरा पूरा ध्यान रखा ।अंत मे एक संदेश आप सभी को देना चाहता हूँ।आप अपना और अपने परिवार का पूरा ध्यान रखें ।सावधानी बरते और सुरक्षित रहें ।मेरी ईश्वर से यही कामना है ।
मैंने मुस्करा कर जीत लिया दर्द अपना ।
वो कोरोना मुझे दर्द दे कर भी
मुस्करा ना सका ।।
डाक्टर प्रभु दयाल पाहवा
पाहवा मेडिकल सेण्टर
नई रैलवाय रोड गुड़गाँव