दुनियां गज़ब की…..!!
*पहला दिन*
डॉक्टर साहब बचा लो इसे। ये अपने माँ- बाप का इकलौता है।
*दूसरा दिन*
सभी रिश्तेदार मिलकर बात कर रहे होते हैं। डॉक्टर तो भगवान हैं। वास्तव में तुरन्त इलाज चालू कर दिया।
*तीसरा दिन*
अब खतरे से बाहर बता रहे हैं। भला हो डॉक्टरों का। बचा लिया।
*चौथा दिन*
आज तो दूध-दलिया भी ले लिया। अब कोई दिक्कत नहीं है।
*पांचवा दिन*
डॉक्टर साहब हमें कोई जल्दी नहीं है। आप जब चाहो तब छुट्टी देना। घर पर ऐसी सम्भाल नहीं हो सकती।
*छठा दिन*
एक रिश्तेदार कहेगा। अरे बाबा अब ठीक है। पर डॉक्टर बिल बनाने में लगे हुए हैं। खुद की मर्जी से तो ये छुट्टी देंगे नहीं।
*सातवां दिन*
20 हज़ार की दवा लग गई। एक रिश्तेदार कहेगा। अरे बाबा अंदर किसने देखा लगाई भी है कि नहीं। वापस दुकान पर बेच देते हैं ये अस्पताल वाले।
*आठवां दिन*
इतना पैसा किस बात का। लंबा चौड़ा बिल बना दिया। ऐसी क्या बीमारी हो गई थी। ठीक ठाक ही तो है इतने दिनों से। एक रिश्तेदार कहेगा। अरे बाबा मैं पहले ही कहता था। ये अस्पताल लुटेरा है और डॉक्टर भी कोई ढंग के नहीं हैं। चलो विधायक जी को फोन करते हैं। इतने पैसे लूट रहे हैं ये अस्पताल वाले। दूसरा रिश्तेदार सलाह देगा। मेरी मानो तो मुकदमा दर्ज करा दो अस्पताल पर। लूटने की भी कोई हद है।
*नवां दिन*
वो तो विधायक जी ने लताड़ा अस्पताल वालों को तो 30 हज़ार कम किये। वरना लूट रहे थे। एक रिश्तेदार कहेगा। अच्छा किया। ये डॉक्टर नहीं हत्यारे हैं। इनका बस चले तो आदमी को जिंदा ही नहीं छोड़ें। और घरवालों को पैसे से बर्बाद कर दें। भगवान बचाये इनसे तो। ये तो पैसा लगाकर बचा लिया। वरना डॉक्टरों के भरोसे तो मर जाता।
*प्रेरणा*
पहले दिन भगवान और चंद दिनों में ही हत्यारे घोषित कर दिए जाते हैं डॉक्टर और अस्पताल लूट के अड्डे। लेकिन एक बात समझ नहीं आती कि अस्पताल और डॉक्टर किसी को घर बुलाने नहीं जाते। यदि ये इतने ही खराब हैं तो गूगल पर दवा सर्च कर घर पर ही क्यों न इलाज कर लिया जाता। क्यों भागते हो अस्पताल और डॉक्टर्स के पास। अपनी सोच को बदलो। कोरोना काल में जब आपका सगा भाई और घरवाले हाथ नहीं लगाते। ऐसे में अस्पताल के नर्सिंग स्टाफ और डॉक्टर ही हैं जो आपको बचाने के लिए जूझते हैं। इनके हौसले और स्वाभिमान को चोट मत पहुंचाओ। रही बात गड़बड़ी की तो हर पेशे में कुछ अपवाद होते हैं। तभी तो समाज को आईना दिखाने वाले समाज सुधारक तक जेलों में पड़े हैं। सभी को एक जैसा नहीं समझें। खुद बेईमान होने का मतलब ये नहीं कि सारी दुनिया को बेईमान समझा जाये।