कोरोना,डोलो 650,मैं और मेरा अपराध बोध!!
डॉ नरेन्द्र सिंह
आज जब से मैंने यह ख़बर पढ़ी है कि,सी बी डी टी,ने यह निष्कर्ष निकाला है कि ,
कोरोना के दौरान डोलो 650
लिखने के लिए,निर्माता कंपनी ने डॉक्टर्स को 1000 करोड़ रु के उपहार दिए!!
तब से मैं अवसाद और गुस्से दे जूझ रहा हूँ।
गुस्सा इसलिए कि,कोरोना काल में मैंने भी सरकारी निर्देशानुसार फ़ोन पर,मीडिया पर और संक्रमण की परवाह न करते हुए,व्यक्तिगत तौर पर देखे मरीजों को काफी तादाद में डोलो 650 लेने के लिए लिखा और कहा,लेकिन डोलो निर्माता कंपनी ने मुझे आज तक एक फूटी कौणी भी नहीं दी,न ही उनका कोई प्रतिनिधि मुझसे मिला!बल्कि जब मेरा परिवार कोरोना से ग्रसित हुआ तो मैंने अधिक कीमत पर बाजार से डोलो खरीद कर खाई,एक सैंपल तक नहीं मिला!
अवसाद ग्रस्त इसलिए हूँ, कि, जब से 1000 करोड़ वाली खबर मीडिया में प्रचारित हुई है,तब से मेरे वो सभी मुफ्तखोर, परामर्श शुल्क विहीन ,मित्र और रिश्तेदार,बड़ी व्यंगात्मक, कटीली और जहरीली मुस्कुराहट के साथ मुझे घूर रहे हैं-अच्छा तभी डॉक्टर साहब ने हमारे जितने भी मिलने वाले लोग थे सभी से कहा था-बुखार आये तो डोलो 650 खा लेना!!
अब उन सभी रिश्तेदारों को मेरी पहले से निकली तौंद और भी बड़ी लगने लगी है,उन्हें लगता है कि इस 1000 करोड़ में से कम से कम लाखों में तो मुझे मिले होंगे,और मुझे मिला झुनझुना,इसलिए में अवसाद
से घिर गया हूँ!
आज जब शाम को मैं मोहल्ले वाली पान की दुकान पर पान खाने गया तो,पान वाला भी मुझे बहुत घूर कर देख रहा था,उसकी आँखों में कटाक्ष था-बोला,डबल पिपरमेंट इलाइची और किवाम वाला पान लगा दूं, डॉक्टर साहब?मैंने कहा ;नहीं सादा ही लगाओ,बिना चुने का!तो वो हँसने लगा-हाँ सर चुना तो आप पहले ही बहुत लगा चुके हैं जनता को,डोलो 650 के नाम पर!!
कसम से मैंने भी हजारों लोगों को डोलो 650 खाने की सलाह दी थी,व्हाट्सएप पर देख देख कर,पर कसम से ये कंपनी वाले कितने ना शुक्रे हैं,मेरे नाम के आगे डॉ नहीं है तो मुझे धेला नहीं दिया,कसम से कभी अगर उस कंपनी का सेल्स मैन मेरी दुकान पर आया तो कहूंगा-अबे सुन,दिलीप पान वाले को इतना हल्के में मत लेना,डॉक्टर साहब से ज्यादा तो मैंने तुम्हारी डोलो 650 बिकवाई है!!
अब मैं डोलो 650 के मुद्दे पर थोड़ा गंभीरता से सोचने का प्रयास करने लगा,कैसे ,क्यों कर डोलो 650 नाम इतना प्रचलित क्यों हुआ??
जब कोरोना इंफेक्शन के उपचार की बात पेंडेमिक के दौरान आई,तब न तो इतने चिकित्सक थे,कि बढ़ते मरीजों की संख्या के साथ संपर्क स्थापित हो सके ,न ही दवाओं की उपलब्धता थी,भयानक जानलेवा संक्रमण के डर से और सरकारी निर्देशानुसार अधिकांश लोग होम क़ुरएन्टिनें में रह रहे थे ,सरकार के सभी सूचना पत्रकों और आदेशों में इसके उपचार की जो गाइडलाइंस थीं उसमें डोलो 650 का स्थान सर्वोच्च स्थान पर था,और इस कि उपलब्धता भी अन्य पेरासिटामोल मूलक दवाओं से ज्यादा थी।
क्रोसिन सर्व विदित विज्ञापित ब्रांड था ,पर उसमें उपलब्ध 500 ही होती थी ज्यादातर!
डोलो नाम इतना सर चढ़ गया कि,पुदीन हरा और आयोडेक्स की तरह घर घर में डोले ,डोलो,डोलो 650!
न किसी डॉक्टर के प्रेस्क्रिप्शन की मोहताज थी न सलाह की!!
“गली गली में शोर है,डोलो तेरा जोर है”वाली तर्ज पर डोलो बिक रही थी,और डॉक्टर्स द्वारा कम सोशल मीडिया,न्यूज़ पेपर,टेलीफोनिक सलाह,और जनता की माउथ पब्लिसिटी से खूब बिकी!!
अब यह भी प्रश्न कौंधता है कि डॉक्टर्स को मोहरा बनाया जा रहा हो,लेकिन हो सकता है शासन के नीति निर्माताओं का ज्यादा बड़ा हाथ हो इस “डोलो डोलो”में!
लेकिन मैं इस बात को भी व्यक्तिगत तौर पर सही नहीं मानता,पर प्रश्न यह उठता है कि,इतने बड़े पेंडेमिक में ,अपनी जान की बाजी लगा कर रात दिन एक कर देनी वाली कौम का चीरहरण कब तक होता रहेगा??
माना कि किसी भी दवा के प्रचार के लिये गलत तऱीके अपनाने की वकालत नहीं कि जा सकती लेकिन, विभिन्न तेलों ,और पतंजलि के तमाम गारंटीड उपचार वाले प्रोडक्ट्स के प्रचार से जनता की हल्की होती हुई जेब,को बचाने का भी प्रयास होना चाहिए, मी लार्ड!!
डॉ नरेन्द्र सिंह