डोलो
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देश के एक कट्टर बुद्धिजीवी वर्ग की मानें तो लगभग सभी डाक्टर्ज़ चोर और कमिशनखोर होते हैं इसलिए इन्हें केवल दवा का जेनेरिक नाम लिखने की अनुमति होनी चाहिए। जेनेरिक दवा वाला पर्चा लेकर जब मरीज़ दवा ख़रीदने जाएगा तो फिर दवा की दुकान पर जो कट्टर ईमानदार व विद्वान दवा विक्रेता होगा वह अपनी अंतरात्मा की आवाज़ व अनुभव से अर्जित ज्ञान के आधार पर ये तय करेगा कि मरीज़ को कौनसे ब्रांड वाली दवा दी जाए। इन बुद्धिजीवियों को भरोसा है कि जो कम्पनीज़ डाक्टर्ज़ को पेन,नोटपैड, कप,प्लेट्स जैसे बेश क़ीमती तोहफ़े देकर पथभ्रष्ट कर देती हैं वे कट्टर ईमानदार दवा विक्रेता को उनके कर्तव्य पथ से नहीं डिगा पाएँगी और इस तरह देशवसियों को देश की सबसे गम्भीर समस्या से हमेशा के लिए छुटकारा मिल जाएगा।यदि इस व्यवस्था से भी समस्या का हल न हो तो दवा का ब्रांड चुनने का अधिकार स्थानीय पंचायत/नगर पालिका को दिया जा सकता है जो कट्टर लोकतांत्रिक प्रक्रिया से अपने क्षेत्र के लिए ब्रांड का चयन करें।फ़िल्म कलाकार, कोमेडीयंस,स्क्रिप्ट राइटर्स, बाबा लोग व क्रिकेटर्स तो ये कार्य पहले से कर ही रहे हैं, उनके अधिकार और अधिक बढ़ाए जा सकते हैं ।(व्यंग्य )
जिस देश में विश्व की सबसे सस्ती दवाएँ और सबसे सस्ता इलाज उपलब्ध हों उस देश की जनता को यदि फ़िर भी कोई परेशानी है तो सरकार को कोई न कोई उपाय अवश्य करना चाहिए ताकि इस समस्या का यथाशीघ्र समाधान हो और देश के उन लाखों चिकित्सकों को भी इस लांछन से मुक्ति मिले जो ईमानदारी से अपना काम कर रहे हैं ।
सरकार को चाहिए कि वो हर दवा का अधिकतम खुदरा मूल्य और गुणवत्ता के सर्वोच्च मानदंड निर्धारित कर दे।घटिया गुणवत्ता की दवा बनाने और बेचने वाली दवा कम्पनीज़ को बंद करे और मार्केट में बाकि बची दवा कम्पनीज़ का मुनाफ़ा इतना कम कर दे कि उनके पास फ़्रीबीज़ के लिए अतिरिक्त राशि ही न बचे।या फिर सभी ब्रंडेड़ दवा बनाने वाली कम्पनीज़ को आदेश दे कि वे केवल जेनेरिक दवा ही बनाएँगे ब्रंडेड नहीं ।यदि जेनेरिक दवाएँ सस्ती और गुणवत्तापूर्ण होती हैं (जैसा कि विद्वान फ़िल्म कलाकारों का कहना है ) तो सरकार को ब्रंडेड दवाएँ बना कर मरीज़ों को “लूट” रही सभी दवा कम्पनीज़ को तुरंत प्रभाव से बंद कर देना चाहिए ताकि फ़िर कभी कोई दवा कम्पनी “पाँच सौ करोड” का व्यापार करने के लिए “एक हज़ार करोड़” के गिफ़्ट बाँटने का अद्भुत कारनामा न कर पाए।
लेकिन अंत में इस देश की प्रबुद्ध जनता एक बात अच्छे से जान ले- यदि लैब एवं दवाओं से हो रही आमदनी को एक चिकित्सा संस्थान की कुल आमदनी से हटा दें तो देश के अधिकतर निजी चिकित्सा संस्थान घाटे के कारण बंद हो जाएँगे या फिर उन्हें अपने आप को जीवित रखने के लिए डाक्टर्ज़ की फ़ीस और प्रसीजर चार्जेज़ कई गुणा बढ़ाने होंगे ।
~डॉ राज शेखर यादव
फ़िज़िशियन,ब्लॉगर