डॉक्टर साहब का हेयर सलून

डॉक्टर साहब का हेयर सलून
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(व्यंग्य)
डॉक्टर्स में बढ़ती बेरोज़गारी से तंग आकर एक चिकित्सक ने हेयर सलून खोलने का विचार किया।
चूँकि उन्होंने कुछ वर्ष मेडिकल प्रोफेशन में भी हाथ पैर मारे थे इसलिए वहाँ सीखी तकनीक को यहाँ लागू करने का निश्चय किया।
सलून के लिए सबसे पहले बैंक से भारी भरकम लोन लिया और अंतर्राष्ट्रीय तकनीक व उपकरणों से सुसज्जित अपने अत्याधुनिक सलून का उद्घाटन सलून व पर्सनल हाईजिन मंत्री से करवाया। पहले ही दिन एक माह के लिये निशुल्क शिविर की घोषणा कर दी जिसमें हर ग्राहक की निशुल्क कटिंग और शेविंग का ऑफर था।आशा थी कि इनमें से कुछ ग्राहक हेयर कलर,स्पा या कोई अन्य सेवा लेंगे मगर ये हो न सका,इसलिए एक माह बाद चार-पाँच पीआरओ रख कर सलून का धुँआधार प्रचार शुरू किया गया। ये पीआरओ आस पास के गावों में घर-घर जाकर लोगों को बताते थे कि कैसे सिर्फ़ उनके सलून में आधुनिक वैज्ञानिक पद्धति व प्रोटोकॉल के अनुसार लेज़र और दूरबीन से बाल काटे जाते हैं। साथ ही डॉक्टर साहब ने जयपुर-दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे स्पेशलिस्ट सलून व्यवसायियों व हेयर स्टायलिस्ट्स से भी संपर्क किया।उन्हें अपने यहाँ विजिट के लिए आमंत्रित किया और हर शुक्रवार,हर मंगलवार,माह के तीसरे गुरुवार, दूसरे शनिवार इत्यादि को उनके दिन तय कर उनके नाम के बड़े बड़े पोस्टर और होर्डिंग पूरे शहर में लगवाये।अपने सलून को सबसे अलग व विशिष्ट बनाने के लिए NABH (National accreditation board of Hair salons )के लिए आवेदन किया और “ले देकर” एक माह में ही सीधे फ़ुल अक्रेडिटेशन सर्टिफिकेट भी ले लिया।
उनके इस नवाचार का डंका बहुत शीघ्र आसपास के इलाक़े में फैल चुका था और उनके काम से प्रभावित सभी सलून वालों ने इन्हें अपना निर्विरोध व एकमान्य नेता मान लिया।डॉक्टर साहब की देखा देखी बहुत से रोड साइड खोखे वालों ने भी एण्ट्री लेवल NABH के लिए आवेदन किया और अधिकांश को ये अक्रेडिटेशन (ले देकर )मिल भी गया।कुछ ही दिनों में स्थानीय बैंकों में लोन लेने वाले सलून ओनर्स की संख्या तेज़ी से बढ़ने लगी थी। पूरे शहर में NABH एक्रेडिटेड सलूंस की बाढ़ सी आ गई।अख़बारों में सेलूंस के बड़े -बड़े विज्ञापन आने लगे,सड़कों गलियों चौराहों पर सेलूंस के बड़े बड़े होर्डिंग दिखने लगे,हर रोज़ अख़बारों के साथ चार-पाँच सेलूंस के पम्पलेट्स भी दिखाई देने लगे।कुछ अति उत्साही सलून वालों ने टाइगर्स,एलीफ़ेंट्स इत्यादि क्लब्स से संपर्क करके आस पास के गाँवों में निशुल्क कटिंग -शेविंग शिविर लगाने शुरू कर दिए।
लेकिन इन सब गतिविधियों के कुछ दुष्परिणाम भी दिखने लगे।शहर के बहुत से लोग जो पहले पैसे देकर कटिंग करवाते थे अब हर माह किसी न किसी निशुल्क शिविर में कटिंग के लिए जाने लगे थे इस से पैसा देकर कटिंग करवाने वाले ग्राहकों की संख्या कम होने लगी। दूसरे, nabh व विज्ञापनों पर आए खर्च व लोन की किश्तों के कारण सेलूंस के खर्च पहले से कई गुणा अधिक हो गये थे,लिहाज़ा अब शहर में कटिंग और शेविंग के दाम भी कई गुना बढ़ गए जिस से जनता में असंतोष होने लगा।जनता ने सलून वालों को चोर,डाकू, लुटेरा, कमीशन खोर तक कहना शुरू कर दिया।सलून वालों की कार्यप्रणाली पर टीवी सीरियल्स तक बनने लगे।
शीघ्र ही सरकार तक भी सलून वालों के बढ़े हुए रेट्स व जनता के आक्रोश की बात पहुँची तो सरकार ने तय किया की शेविंग और कटिंग एक आम व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकता हैं इसलिए सरकार अब नागरिकों के लिए एक “निशुल्क सैलूनजीवी योजना” लाएगी जिसमें सभी नागरिकों को निशुल्क शेविंग और कटिंग की सुविधा मिलेगी,योजना का प्रीमियम सरकार ख़ुद भरेगी।योजना के लिए निजी व सरकारी सेलूंस का पंजीकरण शुरू किया गया।
कुछ सलून वालों को सरकार के प्रस्तावित रेट्स क़तई पसंद नहीं थे इसलिए उन्होंने इस योजना से दूरी बना ली लेकिन डॉक्टर साहब का सलून योजना में पंजीकरण करने वाला पहला सलून था।डॉक्टर साहब ने तो घोषणा कर दी कि उनके सलून में योजना के लाभार्थियों को निशुल्क शेविंग और कटिंग के साथ साथ निशुल्क मसाज भी दिया जाएगा।इसी बीच समय पर लोन की किश्त न चुका पाने के कारण दो सलून वाले आत्महत्या भी कर चुके थे। पूरे राज्य के सलून व्यवसाय में आए क्रांतिकारी बदलाव के कारण भारी उथल पुथल मच गई थी।
क्रमशः
डॉ राज शेखर यादव
फ़िज़िशियन,ब्लॉगर

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