चिकित्सा पेशे में व्यवसाय की अवधारणा इन दिनों कई लोगो व नेताओं के मुँह से सुना जा सकता है कि चिकित्सा पेशा तो एक सेवा है , इसे व्यवसाय मत बनाओ । चाहे उपभोक्ता संरक्षण व अन्य क़ानूनी व्यवस्थाओं में लापरवाही पर आर्थिक दण्ड के प्रावधान के अलावा कई तरह के व्यावसायिक शुल्क भी लिए जाते है ।
यदि किसी व्यक्ति ने चिकित्सा पेशे को अपने जीवन यापन के लिए चुना है और उसे इसके लिए सरकार से कोई आर्थिक मदद भी नहीं मिल रही है बल्कि वह कई तरह के शुल्क व टैक्स भी दे रहा है तो आप कैसे यह उम्मीद कर सकते है की उसके कार्य में वह आर्थिक लाभ की मंशा नहीं रखे । हाँ, व्यावसायिक शुचिता की उम्मीद ज़रूर रखी जा सकती है जो हर व्यवसाय चाहे वो व्यापार हो , इंजीनियरिंग हो , पत्रकारिता हो सभी जगह वांछनीय है । महज़ वो चिकित्सक है इसलिए कमाई पर ध्यान ना दे , इस धारणा को कैसे उचित ठहराया जा सकता है । केरियर चुनते समय एक अच्छे जीवन को जीने की चाहत सभी में होती है । कठोर परिश्रम से अच्छे अंकों के साथ जब आप इसे चुनते है तो निस्संदेह एक अच्छी लाइफ जीने के भी आप हक़दार होते है । और यदि बात केवल भाव की ही है तो फिर ऐसा कौनसा पेशा है जहां सेवा का भाव नहीं होना चाहिए ।
येन केन प्रकारेन, उचित अनुचित का ध्यान ना रखकर लाभ कमाने की प्रवृति व्यावसायिक शुचिता का उल्लंघन है , जो ग़लत है चाहे वो चिकित्सा पेशा हो या अन्य कोई भी व्यवसाय । व्यवसाय का अर्थ यह बिल्कुल भी नहीं है कि मीडिया पीत पत्रकारिता करे , एक दुकानदार अपने ग्राहक को कम तोले या मिलावट करे। इसी प्रकार एक चिकित्सक अनावाश्यक जाँचे या दवा लिखे । लेकिन उचित तरीक़े से व्यावसायिक भाव से लाभ कमाने के दृष्टिकोण को चिकित्सा पेशे के लिए कैसे अनुचित माना जा सकता है । अपनी अतिरिक्त मेहनत , ज्ञान व स्किल से एक चिकित्सक उचित तरीक़े से भला क्यों ना कमाए । रही बात निःशुल्क सेवा की , तो इसे किसी के उपर ज़बरदस्ती थोपा नहीं जा सकता । अपने विवेकानुसार व स्वेच्छानुसार चिकित्सक भी मानवीय दृष्टिकोण अपनाते ही है । ज़रूरतमंद की मदद करने के बाद इसका प्रदर्शन करना कुछ तो ज़रूरी भी नहीं समझते ।
कोई भी योजना सही मायनों में तब ही कारगर हो सकती है जब सेवा प्रदाता यानी चिकित्सक इसे मजबूरन उसके ऊपर लादी ‘सेवा’ के रूप में बोझ या बेगारी ना समझे , बल्कि इसकी सरंचना इस तरह से हो की इसमें सभी का हित होता हो । चिकित्सक का अहित कर दूसरों का छद्म हित करने की सोचना जायज़ कैसे माना जा सकता है ।
डॉक्टर भी इसी समाज का एक भाग है , वह महज़ एक इंसान है जो इस चुनौतीपूर्ण व ज़िम्मेदाराना कार्य को करने का प्रयास भर करता है । चिकित्सीय पेशे में एक चिकित्सक उपलब्ध संसाधनों व अपने चिकित्सीय ज्ञान से मरीज़ को ठीक करने में हर संभव प्रयत्न करता है ।
अनावश्यक दबाव की रणनीति के बजाय ऐसा माहौल पैदा हो कि वो बजाय पचड़ो से बचने के चक्कर में पीछे हटने के और अधिक बेहतर करने की सोचे, एक चिकित्सक समाज को अपना श्रेष्ठ देने की सोचे ।