अलग-अलग चार्ज डॉक्टरों को लुटेरा नहीं बनाते
किसी भी कार्यक्षेत्र में, आपके पास सस्ती सेवा और लक्ज़री सेवा दोनों की ही सुविधा है –
अगर आप ट्रेन से चेन्नई से दिल्ली जाना चाहते हैं तो आप अपनी स्वेच्छा से जा सकते हैं -जनरल , SL , 3A , 2A या 1A में।
प्रत्येक की अलग-अलग लागत है लेकिन सभी कोच चेन्नई से दिल्ली जाते हैं । ऐसा नहीं है कि SL कोच भोपाल तक जाता है, 3A आगरा तक और 1A ही दिल्ली पहुंचता है ।
अगर आप कोई फिल्म देखना चाहते हैं आप किसी भी क्लास में बैठ सकते हैं- फ्लोर टिकट , बेंच टिकट, कुर्सी, सोफ़ा ,एसी बालकनी ।
यह नहीं है की फ्लोर टिकट को केवल आधी फिल्म दिखाई जाती है और सोफा वाला पूरी फिल्म देखता है और एसी वालों को 3 गाने और देखने को मिलते हैं ।
इसी तरह अस्पतालों में भी आपके पास निशुल्क सरकारी अस्पताल है, आपके पास थोड़ा अधिक आराम के साथ छोटे नर्सिंग होम हैं । आपके पास लग्जरी वाले 7 स्टार अस्पताल हैं । लेकिन इन सभी मामलों में उपचार एक ही है और आप विलासिता के लिए अतिरिक्त पैसे का भुगतान करते हैं ।
अगर कोई ट्रेन में जनरल का टिकट खरीदें, शिकायत करें कि एसी नहीं है और इसे लापरवाही कहें । थिएटर में बेंच के लिए टिकट खरीदें, कुशन सीट न होने की शिकायत करें और इसे लापरवाही कहें या जाओ और 1A कोच में बैठो और कहो कि वे केवल SL का किराया देंगे और रेलवे लूट रहा है
थिएटर की एसी क्लास में जा बैठें और कहें कि बेंच का ही पैसा देंगे और थिएटर लूट रहा है ।
क्या आप उन लोगों को लालची, स्वार्थी और अवास्तविक कहते हैं ?
लेकिन भारत में स्वास्थ्य देखभाल में यही होता है । कुछ लोग सरकारी अस्पताल में आते हैं और विलासिता चाहते हैं । वे कॉर्पोरेट अस्पतालों में जाते हैं और मुफ्त इलाज चाहते हैं । स्वास्थ्य अर्थशास्त्र की दृष्टि से यह बिल्कुल भी संभव नहीं है तो फिर किस लिए लोग डॉक्टर और निजी चिकित्सालय के मालिक को लालची, स्वार्थी और अवास्तविक कहते हैं ?