| सुप्तावस्था : तीन प्रसंगANIRUD KUMAR DHARNIMAY 28 READ IN APP यह आवश्यक नहीं कि आंख बंद होने पर ही व्यक्ति नींद में हो I प्रायः आंख के खुले रहते भी काफी जीवन नींद में ही व्यतीत हो जाता है I प्रसंग एक वह बड़े शहर का एक प्रसिद्ध डॉक्टर था जिससे मिलने के लिए मरीज को कम से कम 15 दिन की प्रतीक्षा करनी पड़ती थी I उसके पास वह हुनर था कि गंभीर से गंभीर बीमारी की चिकित्सा उसके बाएं हाथ का खेल था I इसलिए बिना शिकन के मरीज घंटों इंतजार करते रहते थे उससे मिलने के लिए I भारी भरकम फीस देने में भी किसी को कोई आपत्ति नहीं थी क्योंकि इलाज तो शर्तिया था ही, ऊपर से डॉक्टर भी मृदु भाषी था I एक असाध्य रोग से ग्रसित होने के कारण भाग्य ने मुझे भी उसके द्वार पर ला पटका था I लंबी बीमारी और तरह-तरह के असफल इलाज ने मेरे शरीर को अब तक खोखला और बेहद क्षीण कर दिया था I दवाईओं, टॉनिक और विटामिन की गोलियों के बावजूद बदन एक हड्डियों का ढांचा बनकर रह गया था I मेरी बीमारी की केस फाइल अलबत्ता बहुत मोटी हो चुकी थी I उसमें डॉक्टरों की टेढ़ी-मेढ़ी हस्तलिपियों में लिखे गए उनके पर्चे और दर्जनों पैथोलॉजिकल लैब की जांच रिपोर्ट सलग्न थी I शरीर में जैसे किसी हिस्से में कैंसर की कोशिकाओं की संख्या में असीमित वेग से बढ़ोत्तरी होती है, उसी तरह मेरी केस फाइल भी बढ़ती जाती थी I निश्चित दिन और समय पर मैं डॉक्टर के बरामदे में अन्य मरीजों के साथ अपनी बारी की प्रतीक्षा में था I वहां के परिसर में चारों तरफ अत्यंत सफाई थी I मरीजों को जूते चप्पल बरामदे के बाहर ही उतारने के निर्देश थे I हर आधे घंटे में एक सेवक फर्श पर फिनाइल से पोछा लगा जाता था जिसकी गंध हवा में तैरती रहती थी I दीवारों पर भी मास्क पहनने और निरंतर हाथ धोने की हिदायते लिखी थी जिससे छूत वाली बीमारियों से बचा जा सके I रिसेप्शन के स्टाफ ने मास्क पहने हुए थे और उनके सामने सांइटिज़ेर रखे थे जिसका वे भरपूर उपयोग कर रहे थे I अपनी बारी आने पर मेरा नाम पुकारा गया तो मैंने डॉक्टर के कक्ष में प्रवेश किया और उसने मुस्कुरा कर मेरा स्वागत किया I उसके सामने की कुर्सी पर बैठते हुए मैंने अपनी मोटी केस फाइल उसकी तरफ मेज पर बढ़ा दी I डॉक्टर ने बड़े इत्मीनान और आत्मविश्वास से फाइल खोली और मैं उसके चेहरे के हाव-भाव पढ़ने लगा जिससे अपने भविष्य का आकलन स्वयं कर सकूँ I अगले ही क्षण मैं हक्का बक्का रह गया I डॉक्टर ने अपनी उंगली को जीभ से गीला किया और फाइल का पन्ना पलटा I एक बार नहीं, बार बार I हर पृष्ठ बदलने से पहले अपनी पूरी बेखुदी में वह उंगली जीभ पर ले जाता – वैसे ही जैसे बैंक का कोई कैशियर गड्डी में बंधे नोटों की थूक लगा कर फुर्ती से गिनती करता है जिससे नोट आपस में चिपके ना रह जाए I गड्डी में नोटों की तरह ही मेरी फाइल भी तो कितने ही संक्रमित लोगों के हाथों और जांच प्रयोगशालाओं के वातावरण से गुजर कर डॉक्टर के हाथों तक पहुंची थी I मैं यह सोच कर सिहर गया कि न जाने कितने ही रोगों के असंख्य प्राणघातक कीटाणु उन पन्नों पर डेरा लगाए बैठे होंगे I डॉक्टर उन सबसे बेखबर थूक से पन्ने पलटता जा रहा था I यदि यह मेरी आँखों देखी घटना न होती तो संभवतः मुझे भी यह बात उतनी ही अविश्वसनीय लगती जितनी पाठकों को लग रही होगी I किन्तु अजीबोगरीब बातें भी कभी कभी सच होती है I बाहर बरामदे के सफाई संबंधित पोस्टर मेरी आंखों के सामने सहसा मुझे मुंह चिढ़ाते हुए और निरर्थक हो कर घूम गए I न जाने क्यों एक विकृत विचार मेरे मस्तिष्क में कौंध गया I क्या यह प्रसिद्ध डॉक्टर भी नोबेल पुरस्कार विजेता, मैडम क्यूरी, की तरह अपनी अजीब और निसंदेह खतरनाक आदत के कारण शीघ्र ही मेरा इलाज़ पूरा होने से पहले तो मर न जायेगा ? प्रसंग दोटाटानगर या जमशेदपुर संभवतः देश का एकमात्र शहर है जो दो नाम से जाना जाता है और वे दोनों नाम किसी एक व्यवसायी परिवार से जुड़े हैं I टाटानगर में एक दर्जन से अधिक टाटा समूह की कंपनियां हैं और हजारों की तादाद में उनके कर्मचारी वहां कार्यरत है I व्ययवसायिक क्षेत्र में टाटा की साफ सुथरी छवि है और समाज कल्याण के कार्य में भी वह सक्रिय भूमिका निभाते हैं I स्वाभाविक है कि उनके अपने कर्मचारियों के कुशल क्षेम का भी वह बहुत ख्याल रखते हैं I एक समय जब सरकारी कर्मचारियों को सेवा निवृत होने के बाद पेंशन के लिए महीनों एड़ियां रगड़नी पड़ती थी, वहीं टाटा कंपनी में यह प्रथा थी कि सेवा काल के अंतिम दिन सेवा निवृत हो रहे कर्मचारी को हाथी की पीठ पर बिठाकर शहर में घुमाया जाता था और उसी दिन कंपनी द्वारा देय राशि मैनेजिंग डायरेक्टर के हाथों उस व्यक्ति को एक भव्य समारोह में सौंप दी जाती थी I उन दिनों टाटा की नौकरी के लिए युवा वर्ग लालायित रहता था क्योंकि आम निजी नौकरी की अनिश्चितताओं के विपरीत टाटा की नौकरी समाज में मिडिल क्लास व्यक्ति के लिए एक सुरक्षा कवच थी I किंतु जैसे सर्पदंश से होने वाली मृत्यु के भय से सांपों की आहुति वाले यज्ञ करने के बावजूद भी तक्षक ने राजा परीक्षित को ढूंढ निकाला था, उसी तरह टाटा कंपनी में कार्यरत अयंगर को दुर्भाग्य ने डस ही लिया था I अयंगर पचास वर्षीय इंजीनियर था जिसने डिग्री प्राप्त करने के बाद टाटा कंपनी में ही नौकरी की शुरुआत करके धीरे-धीरे मेहनत और निष्ठा से उन्नति की थी I पिछले कुछ दिनों से उसे एक आंख में पीड़ा थी और पढ़ने में भी दिक्कत हो रही थी I जब तकलीफ बढ़ी तो उसने टाटा के आंख के अस्पताल में ही डॉक्टर को दिखाया I कुछ गहन परीक्षणों के बाद पता चला कि अयंगर की बाईं आंख में ट्यूमर फैल रहा था I इसके दबाव से उसे दर्द था और पढ़ने में साफ दिखाई नहीं पड़ रहा था I डॉक्टर की सलाह पर ट्यूमर को शीघ्र से शीघ्र ही निकाला जाना आवश्यक था जिससे वह शरीर में और कहीं ना फैल जाए I किंतु ऑपरेशन में बायीं आंख से देखने की क्षमता का खोना तो बिल्कुल तय था I यह दुखद समाचार था किन्तु ऑपरेशन के अलावा कोई विकल्प भी नहीं था इसलिए उसके लिए अयंगर का परिवार दिल कडा करके तैयार हो गया I आश्वासन इसी बात का था कि कंपनी की तरफ से छुट्टी और आर्थिक सहायता मिलने में कोई दिक्कत नहीं थी I निश्चित दिन अयंगर को ऑपरेशन थिएटर में ले जाया गया I परिवार के सभी सदस्यों ने हाथ हिला कर उसका मनोबल बढ़ाया और भगवान से प्रार्थना की I थिएटर के द्वारा बंद होते ही उनके पास प्रतीक्षा करने के अलावा कुछ ना था I तीन घंटे के ऑपरेशन के बाद अयंगर को आईसीयू में भेज दिया गया I होश आने पर सबसे पहले उसकी पत्नी को उससे मिलने का अवसर दिया गया I किंतु जैसे ही पत्नी की दृष्टि बिस्तर पर अर्ध मूर्छित अयंगर पर पड़ी तो वह स्वयं ही चक्कर खाकर फर्श पर गिर पड़ी I आईसीयू स्टाफ बड़ी मुश्किल से उसे स्ट्रेचर पर उठा कर बाहर लेकर आए तो वहां खड़े सारे रिश्तेदार चिंतित हो गए I घबराई पत्नी ने लेटे लेटे अपने बड़े लड़के को पास बुलाकर कान में कुछ फुसफुसाया तो वह बेहद हतप्रभ होकर अयंगर से मिलने आईसीयू में घुस गया I वह तब स्वयं भी भौंचक्का रह गया जब उसने देखा कि ऑपरेशन में डॉक्टरों ने गलती से अयंगर की बायीं आंख की जगह दायीं आंख का ऑपरेशन कर दिया था और जिस पर पट्टी बंधी हुई थी जब कि ट्यूमर वाली आंख वैसी की वैसी रह गई थी I डॉक्टरों की सुप्तावस्था के कारण अयंगर की दायीं आंख की रोशनी जा चुकी थी और बायीं आंख का हश्र तो पहले से ही तय था I इस हादसे के बाद टाटा कंपनी ने सहानुभूति दिखाते हुए अयंगर को उसी वेतन पर अपने प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त कर दिया था I टाटा द्वारा अयंगर को दिया हुआ सुरक्षा कवच चटक अवश्य गया था किंतु पूरी तरह ध्वस्त नहीं हुआ था I प्रसंग तीन शहर के गिने-चुने मनोवैज्ञानिक डॉक्टरों में उसका प्रथम स्थान था I अपने मनोरोगियों के लिए तो वह डॉक्टर भगवान से कम नहीं था क्योंकि धीरे-धीरे, परत दर परत, वह अपने इलाज से उनकी कुंठाओं, भय और अवसाद को या तो जड़ से समाप्त कर देता नहीं तो नियंत्रण में तो रखता ही था I हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना था कि उसकी दवाएं नशीले पदार्थ के अलावा कुछ नहीं थी I वे दवाएं मदहोशी की स्थिति कायम रखती थी जिससे उनके आसपास के लोगों को मरीजों में इलाज से पहले वाला विचलित और हिंसक व्यवहार नजर नहीं आता था I सच्चाई का तो पता नहीं किंतु वास्तविकता तो यही थी कि डॉक्टर के मरीज लंबे समय तक उससे जुड़े रहते थे – जैसे गाय का बछड़ा पोषण के लिए अपनी मां से जुड़ा रहता है I पचास वर्षीय डॉक्टर का शरीर अब ढल चुका था किंतु उसकी दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आया था I सुबह 8:00 बजे से क्लीनिक में आना और दोपहर में भोजन तक मरीजों को देखना I खाना खाने के बाद फिर से मरीजों की जांच का सिलसिला रात 8:00 बजे तक चलता रहता I अपनी इसी कमरतोड़ मेहनत से डॉक्टर ने अपार धन और नाम दोनों ही कमाए थे I डॉक्टर की पत्नी का जीवन प्रायः नीरस ही बीता था क्योंकि डॉक्टर तो अपने मरीजों में अत्यधिक व्यस्त था किंतु स्त्री के पास करने को कुछ विशेष नहीं था I पति का सानिध्य पाने के लिए जब भी पत्नी डॉक्टर को किसी दूसरे शहर घूमने जाने का प्रस्ताव रखती तो पति से उसे यही जवाब मिलता, “मेरे मरीजों को मेरी आवश्यकता है और वह मुझ पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं I मेरी अनुपस्थिति में उनकी हालत को कौन संभालेगा ? वह परेशान हो जाएंगे I इसी कारण मैं अपना शहर छोड़ कर एक दिन के लिए भी मौज मस्ती के लिए कहीं नहीं जा सकता I” पत्नी मन मसोस कर रह जाती और उसे यही शंका होती कि मरीज नशीली दवाईओं के लिए डॉक्टर पर अधिक निर्भर थे या जाने अनजाने में पैसे और शोहरत के अत्यधिक लोभ में डॉक्टर स्वयं मरीजों पर अधिक निर्भर था I |
बाहर बरामदे के सफाई संबंधित पोस्टर मेरी आंखों के सामने सहसा मुझे मुंह चिढ़ाते हुए और निरर्थक हो कर घूम गए I न जाने क्यों एक विकृत विचार मेरे मस्तिष्क में कौंध गया I क्या यह प्रसिद्ध डॉक्टर भी नोबेल पुरस्कार विजेता, मैडम क्यूरी, की तरह अपनी अजीब और निसंदेह खतरनाक आदत के कारण शीघ्र ही मेरा इलाज़ पूरा होने से पहले तो मर न जायेगा ? प्रसंग दो
इस हादसे के बाद टाटा कंपनी ने सहानुभूति दिखाते हुए अयंगर को उसी वेतन पर अपने प्रशिक्षण संस्थान में प्रशिक्षक के पद पर नियुक्त कर दिया था I टाटा द्वारा अयंगर को दिया हुआ सुरक्षा कवच चटक अवश्य गया था किंतु पूरी तरह ध्वस्त नहीं हुआ था I प्रसंग तीन शहर के गिने-चुने मनोवैज्ञानिक डॉक्टरों में उसका प्रथम स्थान था I अपने मनोरोगियों के लिए तो वह डॉक्टर भगवान से कम नहीं था क्योंकि धीरे-धीरे, परत दर परत, वह अपने इलाज से उनकी कुंठाओं, भय और अवसाद को या तो जड़ से समाप्त कर देता नहीं तो नियंत्रण में तो रखता ही था I हालांकि कुछ लोगों का यह भी मानना था कि उसकी दवाएं नशीले पदार्थ के अलावा कुछ नहीं थी I वे दवाएं मदहोशी की स्थिति कायम रखती थी जिससे उनके आसपास के लोगों को मरीजों में इलाज से पहले वाला विचलित और हिंसक व्यवहार नजर नहीं आता था I सच्चाई का तो पता नहीं किंतु वास्तविकता तो यही थी कि डॉक्टर के मरीज लंबे समय तक उससे जुड़े रहते थे – जैसे गाय का बछड़ा पोषण के लिए अपनी मां से जुड़ा रहता है I पचास वर्षीय डॉक्टर का शरीर अब ढल चुका था किंतु उसकी दिनचर्या में कोई अंतर नहीं आया था I सुबह 8:00 बजे से क्लीनिक में आना और दोपहर में भोजन तक मरीजों को देखना I खाना खाने के बाद फिर से मरीजों की जांच का सिलसिला रात 8:00 बजे तक चलता रहता I अपनी इसी कमरतोड़ मेहनत से डॉक्टर ने अपार धन और नाम दोनों ही कमाए थे I डॉक्टर की पत्नी का जीवन प्रायः नीरस ही बीता था क्योंकि डॉक्टर तो अपने मरीजों में अत्यधिक व्यस्त था किंतु स्त्री के पास करने को कुछ विशेष नहीं था I पति का सानिध्य पाने के लिए जब भी पत्नी डॉक्टर को किसी दूसरे शहर घूमने जाने का प्रस्ताव रखती तो पति से उसे यही जवाब मिलता, “मेरे मरीजों को मेरी आवश्यकता है और वह मुझ पर पूरी तरह निर्भर रहते हैं I मेरी अनुपस्थिति में उनकी हालत को कौन संभालेगा ? वह परेशान हो जाएंगे I इसी कारण मैं अपना शहर छोड़ कर एक दिन के लिए भी मौज मस्ती के लिए कहीं नहीं जा सकता I” पत्नी मन मसोस कर रह जाती और उसे यही शंका होती कि मरीज नशीली दवाईओं के लिए डॉक्टर पर अधिक निर्भर थे या जाने अनजाने में पैसे और शोहरत के अत्यधिक लोभ में डॉक्टर स्वयं मरीजों पर अधिक निर्भर था I









