क्या डेड बॉडी , को ICU में रखा जा सकता है पैसों के लिए #एक_मेडिकल_इन्वेस्टिगेशन :

यह धारणा इतनी कॉमन हो चुकी है।

हम पहले ही इस केस का वैज्ञानिक इन्वेस्टीगेशन करने के पहले यह मान लेते हैं कि मरीज़ का मुख्य चिकत्सक और अस्पताल का ownner दोनों ही बेहद भ्रष्ट और नैतिक रूप से इतने पतित हैं कि, डेड बॉडी से भी पैसे कमाना चाहते हैं।

जिससे यह विश्लेषण नैतिक आधार पर न होकर मात्र वैज्ञानिक और कानूनी रूप से हो। और नैतिक तर्कों की कोई जगह ही न बचे।

अब इन पर आरोप यह है परिजनों का कि एक डेड बॉडी को उन्होंने 2 दिन तक पैसों के लिए भर्ती रखा है।

नैतिक पतित इन लोगों को इन दो दिनों में कितना आर्थिक लाभ होगा और क्या कानूनी कार्यवाही का खतरा होगा इसका वैज्ञानिक विश्लेषण इस प्रकार है। :

कोई भी डेड बॉडी यदि उसका दिल , दिमाग सब बंद हो चुका है तो 2 घंटे बाद उसमें postmortem staining नाम का रंग में बदलाव आ जायेगा। छः घंटे बाद बॉडी अकड़ने लगेगी जिसे Rigor Mortis कहते हैं।

और 18 से 20 घंटे बाद बॉडी से दुर्गंध आने लगेगी जिसे Decomposition कहते हैं और ICU में बॉडी गंभीर संक्रमण फैलाने का खतरा उत्पन्न करेगी। जिससे मशीन, स्टाफ, दूसरे मरीज़ और ये चिकत्सक स्वयं संक्रमित हो सकता है।

अतः यदि इस भ्रष्ट चिकत्सक ने डेड बॉडी को 2 दिन तक वेंटिलेटर पर रखा हुआ था तो बड़ी आसानी से मृत्यु प्रमाण पत्र के समय और सच की मृत्यु में काफी अंतर का आरोप

बड़ी आसानी से सिद्ध हो जाएगा। ये ऐसे अकाट्य प्रमाण होंगे कि Criminal conspiracy में वे दोनों लंबे नपेंगे।

चलिए ज़रा लालच की वजह से ली गई इस रिस्क से उन्हें कितना आर्थिक लाभ होगा यह देखते हैं। आखिर लुटेरे जेल की रिस्क के बावज़ूद लूटते हैं न?

तो देखिए एक ICU में आम तौर पर 6 से 10 बेड होते हैं।

मान लो इन भ्रष्टाचारियों का अस्पताल कम चलने की वजह से मात्र 3 मरीज़ हैं उनके पास।

एक एक अटेंडेंट है मरीजों का परिजन ICU के भीतर। जिसे आराम से शक हो सकता है। शक छोड़ दें, 18 घंटे बाद स्मेल फैलने से बाकी 2 मरीज़ भी हंगामा कर किसी और अस्पताल शिफ्ट हो सकते हैं।

अच्छा इन तीन मरीजों की केअर के लिए नर्स, वार्डबॉय, ड्यूटी डॉक्टर, आया मिला कर तीन शिफ्ट में कम से कम

12 लोग और ये तमाशा देखेंगे। साथ ही इस साजिश का उन्हें हिस्सा बनना पड़ेगा। क्योंकि ड्यूटी डॉक्टर, नर्स को आसानी से समझ आएगा कि मृत्यु हो चुकी है। इनकी जॉब पर रिस्क से माना चलो वो चुप रहेंगे। ( हालांकि इन लोगों को जॉब की कमी होती नहीं है)।

तब भी मुख्य चिकत्सक को एक दिन का अधिकतम कंसल्टेशन एक मरीज़ से 500 रुपये से 1000 के बीच मिलेगा।

अर्थात अधिकतम मान भी लें तो 1000 रुपये दिन मतलब कुल 2000 रुपये अतिरिक्त व्हाइट मनी जिसपर 30 प्रतिशत टैक्स लग जायेगा। इस पतित चिकत्सक को मिलेंगे।

इन 1400 रुपये के बदले उसके बाकी 2 मरीज़ भाग जाएंगे और नए भर्ती नहीं होंगे। 2 भी भाग गए एक दिन बाद तो एक दिन में 2000 का नुकसान हो गया। फिर संक्रमण खत्म करने की प्रक्रिया में भी ICU को कुछ घंटे बंद करना पड़ेगा।

स्टाफ को चुप कराने भी फिर ये कुछ देगा। स्टाफ पैसों के बावज़ूद दुर्गंध और संक्रमण में कैसे काम करेगा?

लेकिन यदि परिजनों ने शिकायत कर PM करवाया तो जेल, कैरियर बर्बाद पक्का।

अब देखिए कुछ तथ्य पूरे भारत मे अब तक ऐसी किसी भी कंप्लेंट में कुछ भी नहीं मिला है।

तो क्या वजह है कि ऐसी धारणा बनी।

आप में से कुछ लोग इस विश्लेषण के बावजूद जिसमें 14 लोग कुछ हज़ार रुपये के लिए न सिर्फ नैतिक रूप से बेहद गिर गए, बल्कि खुद को आपराधिक खतरे में डाला , इससे बेहतर , सुरक्षित चीटिंग के रास्ते होते हुए भी ( दवा लगाओ ही नहीं, मेडिकल स्टोर में वापिस कर कुछ हजार कमा लो)

फिर भी नहीं मानेंगे।

तो उनके लिए मैं आप सबका मस्तिष्क पढ़ देता हूँ।

आपमें से जो भी यह कह रहा है कि डेड बॉडी को पैसों के लिए ICU में रखा गया, ने स्वयं इसे कभी नहीं देखा होगा। आपने ऐसा किसी से सुना है बस। भले ही यह पोस्ट देश के लाखों लोगों को दिखा दो।

संदीप माहेश्वरी ज़ैसे बुद्धिमान मोटिवेशनल गुरु ने तक एक लेक्चर में यह कहा था कि 5 दिन तक डेड बॉडी ICU में रखी गई।

फ़िल्म गब्बर में इस सीन पर तालियां बजती हैं।

तो यह धारणा बनी क्यों? जहां धुआं होता है वहां आग तो होती ही है आप यही कहेंगे न?

देखो डेथ 2 तरह की होती हैं , एक ब्रेन डेड और दूसरी पूर्ण मृत्यु जिसमें धड़कन भी बंद हो जाती है।

ब्रेन डेड व्यक्ति का दिल धड़कते रहता है। और वह वेंटिलेटर पर कृत्रिम सांस से जीवित रहता है।

भारत मे मर्सी किलिंग का कानून नही है। इसलिए चिकत्सक तब तक उसे वेंटीलेटर से अलग नहीं कर सकता जब तक परिजन न चाहें, या ऑर्गन ट्रांसप्लांट जैसी चीजों के लिए उसे न्यूरोलॉजिस्ट की एक टीम द्वारा ब्रेन डेड घोषित न किया जाए।

कई शहरों में तो न्यूरोलॉजिस्ट होते ही नहीं, मृत्यु वहां भी डिक्लेअर करनी होती हैं। इसलिए वहाँ मात्र धड़कन भी रुक जाए तब ही मृत्यु डिक्लेअर की जाती है।

ब्रेन डेड व्यक्ति भी , पूर्णतः मृत नहीं होता और जीवित होने की सम्भावना पूर्णतः खत्म नहीं होती। क्योंकि व्यक्ति के ब्रेन डेड होने का निर्णय चिकत्सक का गलत भी साबित हो सकता है, चीन में Artificial Intelligence की मदद से चिकित्सकों के अवश्यम्भावी मृत्यु के निर्णय ग़लत साबित किये गए हैं। इन वजहों से भी सेफ रहने के लिए चिकत्सक

ब्रेन डेड की घोषणा नहीं करते। हाँ परिजनों को कोई उम्मीद न होने की बात समझा दी जाती है।

कुछ लोग पूर्व धारणाओं, कभी अस्पताल का बिल न चुकाना पड़े क्योंकि वे रिजल्ट न दे पाए इत्यादि की वजह से भी आरोप लगा दिया करते हैं। लेकिन ये आरोप स्वाभाविक तौर पर उपरोक्त विश्लेषण की वजह से साबित नहीं होते।

किंतु बातें फैलते, फैलते धारणाएं बन जाती हैं।

कुल मिलाकर उपरोक्त पतित चिकत्सक के लिए चाकू लेकर अंधेरे में लोगों को लूटना अधिक सुरक्षित, अधिक कमाऊ और कम पकड़े जाने की संभावना वाला अपराध होगा

बनिस्पत डेड बॉडी को अपने ICU में रखे रहने के।

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