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“`”डॉक्टर साहब, आप की शिकायत आयी है। आप मरीज का इलाज न करके नोटस् और ट्रीटमेंट लिखने में व्यस्त रहे। इलाज देर से होने से मरीज खत्म हो गया।”“`

“सर, मरीज सीरियस था। कुछ भी हो सकता था। मैंने उसे चेक कर लिया था। उसके बाद मैं उसका ट्रीटमेंट लिखने लगा।

जब ट्रीटमेंट लिख चुका तो इलाज चालू किया। पर तब तक उसकी स्थिति और बिगड़ गयी। फिर से चेक कर नोटस् डाले। ट्रीटमेंट बदला।

लिखने के बाद ट्रीटमेंट चालू कर रहा था कि स्थिति और नाजुक दिखी। लिहाज़ा फिर से परीक्षण कर नोटस् डाले।

तब इलाज चालू किया । पर मरीज इतनी देर न रुका। खत्म हो गया।”

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“`”आप लिखा पढ़ी जल्दी भी कर सकते थे? शिकायत

मे लिखा है कि आप धीरे धीरे लिखते रहे। क्या आप स्थिति की गम्भीरता नही समझ रहे थे?”“`

“मेरे अकेले के समझने से क्या होता? मेरे कुछ सीनियर लिखावट अच्छी न होने से धोखा खा चुके हैं। मैं जल्दी में लिखता तो खराब लिखाई का आरोप भी लगता। उससे बच गया। देखिये हर चीज साफ साफ और पठनीय लेख मे है।”

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“`”पर लिखा पढ़ी मरीज की स्थिति सुधरने के बाद भी कर सकते थे? पहले मरीजों बचाने का प्रयास जरूरी था। ये तो सरासर लापरवाही हुई।”“`

“सर, आप ठीक कह रहे हैं। पर हमारा अनुभव है कि केस बिगड़ते ही अफरा तफरी चालू हो जाती है। डेथ सर्टिफिकेट की तैयारी, वेंटिलेटर संस्कार की तैयारी, आवेश युक्त वातावरण। फिर सही लिखा पढ़ी सम्भव नही हो पाती। हमारे सहयोगी धोखा खा चुके है। इंजेक्शन दवा भी पूरे एंटर नही हो पाते, बिल का भी नुकसान होता है।

हमारे एक मित्र है, केशियर हैं। उन्होंने हमारी समस्या देखी थी। परेशानी भी समझी थी। हानि उठाते भी देखा था।

एक दिन उनकी आफिस में था। उनकी वर्किंग देखी। वे पहले लिखते थे। दस्तखत कराते थे। फिर रुपये देते थे। मैंने उनसे प्रश्न किया। वे बोले आप लोगों की ट्रेनिंग अलग तरह से होती है। पहले जान बचाओ फिर लिखापढ़ी करो। हमारी अलग तरह से। पहले लिखा पढ़ी फिर रुपये ।

मैने कहा कि मैं अपनी ट्रेनिंग के अनुसार चल कर कैसे गलत हो गया। वे बोले जो आपकी कोर्ट केस देखते हैं वे हमारी तरह ट्रेंड हैं। उन्हें जान से ज्यादा कागज का पेट भरना प्रिय होता है।”

” तभी आजकल मेडिकोलीगल कार्य शालाओं में लिखा पढ़ी , दस्तखत, सील सिक्के की बात बताई जाती है। हम सोचते थे कि इलाज करना क्यों नही सिखाते? वे तो यहां तक कहते हैं कि अगर दस फॉर्म भरने जरूरी हों तो उन्हें भर लें। मरीज को बाद के लिए रखें। अन्यथा मरीज के नाराज होने पर आप पर भी गर्मी, अंगारे गिरेंगे।”

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“`” तो आप अपनी लापरवाही स्वीकार करते हैं?”“`

“सर… *”लापरवाही तो उनकी है जो ऐसे लोगों को हमारी कोर्ट केस सुनने के लिये नियुक्त करते हैं जो हमारी कार्य प्रणाली ही नहीं जानते। “*

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