. लंकाकीअश्वगंधा

. लंका की अश्वगंधा
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(©️डा० डी०के० वर्मा)

राम-रावण युद्ध के बाद, लंका में एक भी राक्षस जीवित नहीं बचा था, जबकि कुछ तो हर हाल में बचने ही चाहिए थे। इस पर कभी कोई रिसर्च नहीं हुई। एक बार किसी विद्वान ने बहुत खोजबीन की और इसका कारण ढूंढ़ निकाला, जो कभी पब्लिश ही नहीं हुई। उनकी रिसर्च-आख्या का पहला भाग, ज्यों का त्यों नीचे दिया जा रहा है-

समुद्र पर पुल बनाया जा रहा था। वानर सेना धुआंधार लंका की तरफ बढ़ी चली आ रही थी। लंका में सरकारी तौर पर, इमरजेंसी की घोषणा की जा चुकी थी। ऐसे में, मीटिंग्स का काम युद्ध स्तर पर और युद्ध की तैयारी मीटिंग के स्तर पर की जा रही थी। लंका-दहन वाले कांड से सबक लेकर, पहले से ही तैयारी करना जरूरी समझा गया। इसलिए दिन-रात मीटिंगों का दौर चल रहा था। अन्न और अस्त्र-शस्त्रों के भण्डार पर भयानक चर्चा हो चुकी थी। आज, युद्ध में होने वाली कैजुअलिटीज पर, चर्चा की गई थी, और तय पाया गया कि इसके लिए सुषेण वैद्य से भी विचार-विमर्श कर लिया जाए। आपातकालीन स्थिति को देखते हुए, मंत्रि-परिषद ने तत्काल उन्हें तलब किया। वैद्यराज हाजिर हुए। वैद्यराज को एक किनारे बैठाया गया। उनके सामने, मंत्रियों और सचिवों में विमर्श शुरू हुआ, फिर अपने पीक पर पहुंचा और फिर एक घड़ी के अन्त में, मंत्रिपरिषद के एक सचिव ने, युद्ध की तैयारी के विषय में उनकी कीमती राय पूछी-“तो ठीक है वैद्यराज ! आप आवश्यक वस्तुओं की सूची कल तक भिजवाएंगे या परसों तक ?” तब जाकर सुषेण वैद्य ने पहली बार अपनी राय दी-“जी ! कल दोपहर तक भिजवाता हूं।”


युद्ध में सम्भावित कैजुअलिटीज के मद्देनजर, वैद्यराज ने एक लिस्ट तैयार की। लिस्ट कुछ ऐसी थी-
(१) चोट पर लगाने के लिए
-दशांग लेप-१० घड़े
-हल्दी का लेप-१० घड़े
(२) अत्यधिक रक्तस्राव के लिए
-लोहासव-१०घड़े
-पुनर्नवा मंडूर वटी-१० बोरा
(३) थकावट के लिए
-मृत संजीवनी सुरा-५घड़े
-अश्वगंधा चूर्ण-५ बोरा
(४) शक्ति बाण लगने पर
-संजीवनी बूटी-एक झोला
(५) अस्थि-भंग के लिए
-धतूर के पत्ते-१० बोरा
-बांस की खपच्ची-२ सहस्त्र
(६) वानरों द्वारा काटे जाने पर दूषि विष
के लिए -मनुका शहद-१घड़ा

लिस्ट बनाकर उसे वैद्यराज ने हाथों-हाथ राजमहल भिजवा दिया।

लगभग चार-पांच दिनों के बाद वैद्यराज सुषेण को सूचना भिजवाई गई कि, उनके द्वारा भेजी गई लिस्ट के अनुसार, औषधियां युद्ध के मैदान में भिजवा दी गई हैं और वे जाकर उसका निरीक्षण कर लें, क्योंकि परसों किसी भी समय, दशानन युद्ध की तैयारियों का जायजा लेने, स्वयं युद्ध के मैदान में आएंगे। सूचना देने वाले राक्षस हरकारे ने, सौ स्वर्ण-मुद्राओं के साथ, उन्हें एक चिट्ठी भी दी थी, जो कि मंत्रि-परिषद के सचिव की ओर से जारी की गई थी। उन्होंने पत्र को खोलकर पढ़ा। उस पत्र में तीन बातों को जोर देकर लिखा गया था, जो कि निम्नवत हैं-
(१) चूंकि युद्धकाल के समय लंका से बाहर जाना सम्भव नहीं है, इसलिए संजीवनी बूटी के स्थान पर किसी अन्य बूटी का प्रयोग किया जाए।
(२) राजकीय औषधि भंडार में कुछ औषधियां पड़े-पड़े खराब हो रही हैं, इसलिए यथासंभव उनका भी प्रयोग किया जाए।
(३) यदि कुछ आवश्यक औषधि और मंगानी हों, तो दो सौ स्वर्ण-मुद्राएं भेजी जा रही हैं। इससे वे, न्यूनतम शर्तों को पूरा करने और सबसे सस्ती कीमत पर देने वाले किसी भी ठेकेदार से, संविदा के माध्यम से खरीद सकते हैं।

सुषेण वैद्य ने हरकारे से, बाकी की सौ मुद्राओं के बारे में कुछ भी नहीं पूछा।

वैद्यराज सुषेण को युद्ध के मैदान में, दूर से ही, लाल नीले पीले रंग के चमचमाते तंबुओं की लाइन दिखाई दी। तम्बू, लंका के अवस्थापना विभाग द्वारा लगवाए गए थे। वैद्य जी ने तंबुओं को पास से जाकर गौर से देखा। फिर उन्होंने उसे, इस डर से इतना धीमे से छुआ, कि छूते ही तम्बू कहीं फट ही न जाए।
तम्बू के अन्दर औषधियां रखी गई थीं। एक राक्षस ने उन्हें, औषधियों की लिस्ट थमाई। उन्होंने लिस्ट का मुआयना किया। उसमें लिखा था –
(१) हल्दी चूर्ण-२ घड़े
(२) लोहासव-५ घड़े
(३) अश्वगंधा चूर्ण- २ बोरा
(४) धतूर के पत्ते- २० बोरा
(५) नेत्रवर्ती काजल – ४० घड़ा
(६) दसन संस्कार मंजन -५०
बोरा
(७) माहवारी रोधक स्फटिक भस्म-२०

बोरा

दशानन के पीछे तीन-चार मंत्री लोग खड़े थे। दशानन दूर से तंबुओं को देख रहे थे, और मंत्री लोग दशानन का मुंह देख रहे थे। होशियार मंत्री वही होता है, जो राजा का मुंह निहार कर, उसके मूड को सही-सही ताड़ सके। अगर राजा की भौंहें ऊपर चढ़ें, तो बढ़िया मंत्री झट से कहेगा ‘वैद्य जी ! ऐसे ही काम करोगे तो सस्पेंड समझो अपने आप को’। अगर राजा का की मूंछें ऊपर की ओर तनें, तो चतुर मंत्री तुरंत वैद्य जी की पीठ थपथपा कर ‘शाब्बास शाब्बास वैद्य जी’ करने लगेगा।

दशानन ने वैद्य जी से पूछा-“सब तैयारी हो गई वैद्यराज ?” कर्मचारी से अफसर लोग अपने स्टेटस के हिसाब से सवाल पूछते हैं। तहसीलदार के स्तर का अफसर होता, तो वैद्य जी को चोर साबित करने के लिए, बोरा खुलवा कर, चूरन तौलवाता। उसके ऊपर का अफसर, वैद्य जी को बड़ा चोर मानकर, घड़ों की गिनती करता। सचिव स्तर का अधिकारी, पहले तंबू में खोपड़ी अंदर डालकर दायें-बायें हिलाता फिर बाहर निकाल ऊपर-नीचे हिलाकर पूछता ‘कोई समस्या तो नहीं है ?’ मंत्री होता तो तंबू में दस फीट दूर से ही झांककर कहता ‘राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मामला है, लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी वैद्य जी’। राजा लोग वही पूछते हैं जो दशानन ने पूछा था। जवाब में वैद्य जी ने वही कहा, जो सतयुग से लेकर कलयुग तक, वैद्य लोग कहते आए हैं-“हां महाराज ! सब तैयारी है।”

सबके जाने के बाद वैद्यराज, तम्बू में अंदर घुसे और एक चुटकी अश्वगंधा का चूर्ण उठाकर सूंघा। उसमें उन्हें सचमुच में वैसी ही गंध आई, जैसी कि अश्वों से या अस्तबल में से आती है। उन्होंने उसे उंगलियों के बीच रखकर मसला। उन्हें पक्का हो गया कि, यह घोड़े की शुद्ध लीद नहीं थी। बाकी औषधियों की जांच करने की जरूरत, उन्होंने नहीं समझी। उन्होंने अश्वगंधा को वहीं छोड़ा और दोनों हाथों से अपना माथा पकड़ कर, लंका के भविष्य पर विचार करने लगे।

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