Foreign Medical Graduates Examination FMGE Eligibility Criteria Why Students Go Abroad To Do MBBS ABPP | MBBS के लिए कहां जाते हैं सबसे ज्यादा भारतीय? कितनों का स्वदेश लौटकर खत्म हो जाता है करियर

MBBS के लिए कहां जाते हैं सबसे ज्यादा भारतीय? कितनों का स्वदेश लौटकर खत्म हो जाता है करियर
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Updated at: 23 Feb 2024 05:16 PM (IST)
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विदेश से मेडिकल की डिग्री लेकर आए हर चार में से एक भारतीय ही भारत में डॉक्टरी कर पाता है. जानिए बीते 10 सालों में कितने छात्र विदेशों से एमबीबीएस करने के बाद भी भारत में डॉक्टर नहीं बन पाए.

विदेश से MBBS करके भारत आए 75% छात्र नहीं बन पाते डॉक्टर

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भारतीयों में मेडिकल की पढ़ाई का काफी क्रेज है. हर साल 15 लाख से ज्यादा उम्मीदवार मेडिकल की पढ़ाई के लिए एंट्रेंस एग्जाम देते हैं, लेकिन कॉलेज में एडमिशन मात्र एक लाख उम्मीदवारों को ही मिल पाता है. ऐसे में फिर बाकी छात्र विदेश का रुख करते हैं.

हर साल हजारों भारतीय छात्र अमेरिका, यूके, रूस, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में एमबीबीएस करने जाते हैं. इसका बड़ा कारण ये भी है कि यहां भारत की तुलना में मेडिकल की पढ़ाई काफी सस्ती है, लेकिन जब ये छात्र विदेशी मेडिकल कॉलेज से पढ़ाई पूरी करके भारत में डॉक्टरी यानी प्रैक्टिस करना चाहते हैं या आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं तो आधे से ज्यादा छात्र फेल हो जाते हैं.

इसका कारण है एफएमजीई यानी कि फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन. विदेशी कॉलेज और यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढ़ाई करके भारत में प्रेक्टिस करने के लिए एफएमजीई की परीक्षा पास करना अनिवार्य है. एफएमजीई का एग्जाम पास करने पर ही उनकी विदेशी मेडिकल डिग्री को भारत में वैलिड माना जाता है.

आइए इस स्पेशल स्टोरी में जानते हैं फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन की पात्रता के लिए क्या शर्तें हैं, कितने छात्र एफएमजीई का एग्जाम पास ही नहीं कर पाते, सबसे ज्यादा पास-फेल होने छात्र किस देश से हैं और किस देश में पढ़ाई का कितना खर्चा आता है.

FMGE के लिए क्या हैं शर्तें
नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंस (NBEMS) की ओर से हर साल दो बार एफएमजीई स्क्रीनिंग टेस्ट कराया जाता है. फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन में पास होने के लिए कम से कम 50 फीसदी अंक हासिल करना जरूरी होता है. 

उम्मीदवार विदेशी कॉलेज में एडमिशन लेने के बाद इस एग्जाम के लिए 10 साल तक ही अप्लाई कर सकते हैं. यानी पांच-छह साल का कोर्स करने के बाद चार-पांच साल का ही समय मिलता है.

सरकार ने कुछ देशों को एफएमजीई एग्जाम से बाहर भी रखा है. अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और न्यूजीलैंड से पढ़ कर आने वाले छात्रों को एक्जामिनेशन देने की आवश्यकता नहीं होती है.

कितने छात्र भारत में प्रेक्टिस नहीं कर पाते
हर साल करीब 50 हजार छात्र विदेश में किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस करने जाते हैं. इनमें से सिर्फ 25 फीसदी उम्मीदवार ही फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन में पास हो पाते हैं. अबतक पास होने का सबसे ज्यादा परसेंटेंज साल 2019 में गया था जब 25.79 फीसदी उम्मीदवार पास हुए थे.

कितने छात्र विदेश से एमबीबीएस करके भी भारत में प्रेक्टिस नहीं कर पाए
बीते 10 सालों में 2012 से लेकर 2022 तक कुल 2 लाख 25 हजार 266 छात्रों ने विदेश से पढ़कर भारत में एफएमजीई स्क्रीनिंग टेस्ट दिया. इनमें से महज 20 फीसदी यानी कि 45,764 भारतीय छात्र ही पास हुए. एक लाख 79 हजार 502 उम्मीदवार फेल हो गए.

किस देश में सबसे ज्यादा जाते हैं भारतीय
भारत से हर साल एमबीबीएस करने के लिए सबसे ज्यादा छात्र चीन जाते हैं. 2023 में 13, 317 छात्र चीन गए. इसके बाद फिलीपींस से 8764, किर्गिस्तान से 6683, रूस से 5438, यूक्रेन से 5212, कजाखस्तान से आए 3342 छात्रों ने एफएमजीई का एग्जाम दिया. कुल 10 देश ऐसे हैं जहां से आए कम से कम एक हजार भारतीय छात्रों ने एफएमजीई स्क्रीनिंग टेस्ट दिया. 

किस देश से सबसे ज्यादा फेल होने वाले छात्र
साल 2023 में भारत से 46 देशों में भारतीय एफएमजीई का एग्जाम देने गए. परसेंटेंज के हिसाब से देखें तो सात देश ऐसे थे जहां से मेडिकल की पढ़ाई करने वाला एक भी भारतीय छात्र पास नहीं हुआ. ये देश हैं- अरूबा, अज़रबैजान, क्यूबा, जर्मनी, पापुआ न्यू गिनी, सऊदी अरब, युगांडा. हालांकि यहां छात्रों की संख्या भी काफी कम थी.

किस देश से सबसे ज्यादा पास होने वाले छात्र
परसेंटेंज के हिसाब से देखें तो पांच देश ऐसे थे, जहां से मेडिकल की पढ़ाई करके आए सभी भारतीय छात्र एग्जाम में पास हो गए. यहां का रिजल्ट 100 फीसदी रहा. ये देश हैं- दक्षिण अफ्रीका, यमन, नाइजीरिया, चेक रिपब्लिक, मिस्त्र. इसके अलावा पांच अन्य देशों के भी सभी छात्र पास हुए. हालांकि इन सभी देशों से एक-एक भारतीय छात्र ही था.

नंबर के हिसाब से देखें तो चीन (2063) और फिलीपींस (2369) के सबसे ज्यादा छात्र पास हुए. इसका कारण ये है क्योंकि सबसे छात्र इन दो देशों में ही जाते हैं.

किस देश में MBBS करना कितना खर्चीला 
यूरोपीय देशों में रूस में मेडिकल की पढ़ाई करना काफी किफायती है. रूस विदेशी छात्रों को 15 हजार रुपये तक स्कॉलरशिप भी देता है. यहां किसी यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए 12वीं में कम से कम 50 फीसदी मार्क्स होने चाहिए. एमबीबीएस की ट्यूशन फीस में हर साल तीन से पांच लाख रुपये का खर्चा आता है. साथ ही रूस छात्रों को अन्य सुविधाएं जैसे इंटरर्नशिप और 180 दिन तक जॉब सर्च करने का भी अवसर देता है.

रूस के अलावा किर्गिस्तान, बांग्लादेश, नेपाल, बेलारूस भी मेडिकल की पढ़ाई के लिए अच्छी और सस्ती जगह है. बांग्लादेश में पांच साल के पूरे एमबीबीएस की फीस कुल 42 लाख रुपये तक है. नेपाल में पूरे कोर्स का खर्चा लगभग 40 से 60 लाख रुपये है. 

MBBS के लिए किसी देश का चुनाव कैसे करें
विदेश से मेडिकल की पढ़ाई करने का सपना कई भारतीय छात्रों का होता है, लेकिन सही देश का चुनाव करना एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है. यहां कुछ बातें हैं जिन पर छात्रों को ध्यान देना चाहिए. विश्व रैंकिंग और मेडिकल कॉलेजों की प्रतिष्ठा पर ध्यान दें. पाठ्यक्रम की जानकारी प्राप्त करें. ट्यूशन फीस, रहने का खर्च, यात्रा खर्च और अन्य खर्चों का अनुमान लगाएं. साथ ही अपने बजट के अनुसार देश का चुनाव करें.

इसके अलावा अंग्रेजी या स्थानीय भाषा में कोर्स उपलब्ध है या नहीं, यह भी जान लें. उस देश की भाषा सीखने की अपनी क्षमता का आकलन करें. भाषा बाधा के कारण होने वाली चुनौतियों पर विचार करें. अगर कोई प्रवेश परीक्षा हो तो उसकी तैयारी करें.

चुने हुए देश में और भारत में रोजगार के अवसरों का ध्यान रखें. यूनाइटेड किंगडम, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी, चीन, रूस, फिलीपींस ऐसे कुछ देश हैं जो भारतीय छात्रों के लिए मेडिकल शिक्षा के लिए काफी लोकप्रिय हैं.

भारत में हर साल बनने वाले डॉक्टरों में कितने विदेशी
भारत में हर साल करीब 10 हजार विदेश से आए उम्मीदवार फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन में पास होते हैं. वहीं दिसंबर 2021 के आंकड़ों के अनुसार, भारत में मेडिकल की कुल एक लाख 15 हजार सीट उपलब्ध हैं.  88,120 सीटें बैचलर ऑफ मेडिसिन बैचलर ऑफ सर्जरी (एमबीबीएस) की और 27,498 सीटें बैचलर ऑफ डेंटल सर्जरी (बीडीएस) की हैं. इसका मतलब भारत में हर साल बनने वाले डॉक्टरों में विदेशी डॉक्टरों की संख्या लगभग 10 फीसदी होती है.

साल 2021 में मेडिकल कॉलेज में एडमिशन के लिए 16 लाख उम्मीदवारों ने नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट दिया था. 2020 में यह आंकड़ा 13 लाख था. वहीं भारत में मेडिकल कॉलेजों की कुल संख्या 2023 में 2013 के 387 से बढ़कर 706 हो गई है.

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