डाक्टरसाहबतथावकीलसाहब –

डाक्टर साहब तथा वकील साहबपोस्टमार्टम की गवाही “तो डाक्टर साहब ! आप ये बताइए कि आग लगी थी, तो धुआं भी उठा होगा ?” डाक्टर साहब इस समय, अपने द्वारा किए गए एक पोस्टमार्टम की गवाही देने के लिए, जिला न्यायालय में आए हुए थे। कमरे में मीलार्ड के अलावा पेशकार, कई गवाह, चपरासी, अभियुक्त, पुलिस वाले, बिना ड्रेस के एकाध और ड्रेस पहने हुए कई जेबकतरे भी खड़े हुए थे। कमरे में चिल्ल-पों मची थी। मीलार्ड इस चिल्ल-पों के इतने अभ्यस्त हो गए थे, कि मोबाइल फोन की जरा सी आवाज से ही डिस्टर्ब हो जाने वाले मीलार्ड पर, इस चीख-पुकार का रत्ती भर भी असर नहीं पड़ता था। कमरे में कई वकील आ-जा रहे थे। वकीलों के कोट के कॉलर और आस्तीनें, चीकट होकर चमकने लगी थीं। उनके चीकट काले कोटों को देखकर, उन्हें समझ में आया कि, कोट सिर्फ एक प्रतीक भर है और उसके गंदे होने या न होने से उसके महत्व पर कोई फर्क नहीं पड़ता था और इसलिए उसे धोना जरूरी भी नहीं था। उसी चीकट कोट को पहने हुए प्रतिवादी पक्ष का वकील, उनको फांसने के लिए, उनका क्रास एग्जामिनेशन यानी उनसे जिरह कर रहा था। बात जिरह से शुरू होकर, वकील साहब के कारण अब बहस पर आ गई थी, क्योंकि वकील साहब इस बात को ठाने बैठे थे, कि बात होगी तो धुएं पर ही होगी, आग पर नहीं। हर वकील की तरह, ये वाले वकील साहब भी, अपने को चतुर चपल मानते थे। उनका मानना था कि, चतुर वकील वही है, जो ऐसे सवाल पूछे जिसके बारे में रिपोर्ट में लिखा ही न गया हो। जो लिखा है, उसमें से भला क्या पूछना ? इस थ्योरी के अंतर्गत, डाक्टर साहब को गच्चा देने वाले सवाल, वे कुछ इस तरह से पूछते- “पोस्टमार्टम करने के पहले, क्या मृतिका के घरवाले आपसे मिले थे ?” “क्या आपने पुलिस द्वारा भेजे गए कागजों को पढ़ा था ?” “पोस्टमार्टम कक्ष में जनरेटर है कि नहीं ?” “किसके कहने पर आपने पोस्टमार्टम किया था ?” “लाश के पोस्टमार्टम के समय आपने उसका पेट किस औजार से चीरा था ?” आदि आदि। वकील साहब जब अपनी चतुरतम वाली अवस्था में होते, तो ये तक पूछ लेते कि “पोस्टमार्टम करते समय आपने क्या कपड़े पहन रखे थे ?”
कमरे में मीलार्ड दूसरी फाइलों को देखने में व्यस्त थे, और थोड़ी-थोड़ी देर में सिर उठाकर, वकील साहब को देख लेते थे, जिससे कि वकील साहब को भरोसा हो जाए कि मीलार्ड को बेवकूफ न समझा जाए और वे, सब कुछ देख-सुन रहे हैं। वैसे भी, न्यायालय आपसी भरोसे पर ही चल रही थी। वादी को भरोसा था कि, अभियुक्त पक्का छूट जाएगा। अभियुक्त को भी पक्का भरोसा रहता था कि वकील साहब उसकी खेती-बाड़ी बिकवाने के बावजूद, उसे बचा नहीं पाएंगे। मीलार्ड गवाहों पर भरोसा करते थे कि, गवाह या तो झूठ बोलेगा या बाद में होस्टाइल हो जाएगा। वकीलों को, अपनी चतुराई पर, मीलार्ड की अंतरात्मा पर, गवाहों की बेवकूफी पर और प्रतिवादी की धन-दौलत पर पूरा भरोसा रहता था। इन भरोसों का सबूत ये था, कि अंत में ज्यादातर मुकदमों की फाइलें, मय-सबूत के उच्च न्यायालय और उसके बाद उच्चतम न्यायालय चली जाती थीं। कुल मिलाकर जिला एवं सत्र न्यायालय कुशलतापूर्वक ‘साक्ष्य-संग्रहण-केन्द्र’ के रूप में कार्य कर रही थी। वकील साहब के प्रश्न के जवाब में, डाक्टर साहब ने कहा -“हां ! उठा होगा।”
“तब तो धुआं मृतिका के मुंह में भी गया होगा ?”
“हां ! गया होगा।”
“तो मृतिका की मौत दम घुटने से भी हो सकती है ?”
“मृतिका की मृत्यु जलने से हुई थी, न कि दम घुटने से “
“डाक्टर साहब मैं ये पूछ रहा हूं कि मृतिका की मृत्यु दम घुटने से हो सकती है या नहीं ? हां या न में जवाब दीजिए।”
वकील साहब के सवाल में, डाक्टर साहब फंस गए। आग लगने के दौरान, पैदा हुए धुएं से किसी का भी दम घुट सकता था। डाक्टर साहब को शंका हो गई, कि उनके ‘हां’ कहते ही, वकील साहब उनके द्वारा हस्तलिखित पोस्टमार्टम रिपोर्ट को झूठा साबित कर सकते थे। कुछ समझ न आने पर उन्होंने अजीब सा तर्क दिया-“बीड़ी-सिगरेट पीने से भी, धुआं फेफड़ों में जाता है। तो क्या सब मर जाते हैं ?” वकील साहब को इस उत्तर की उम्मीद नहीं थी। पेशकार ने डाक्टर साहब का बयान लिखना बंद कर दिया और वकील साहब और डाक्टर साहब के बीच होने वाली बहस का आनंद लेने लगा। वकील साहब ने फिर पूछा -“बीड़ी-सिगरेट और कपड़े की आग के धुंए में कोई फर्क नहीं होता है ?”
“नहीं”
“मैं आपको बताता हूं। बीड़ी-सिगरेट पीने के दौरान, आदमी बीच-बीच में नार्मल सांस ले लेता है, और आग लगने पर नहीं ले पाता।” डाक्टर साहब अपनी बात पर अड़े रहे और बोले-“चेन-स्मोकर भी नहीं मरते।”
पहली बार मीलार्ड को, केस में मजा आया और वे बहस में कूद पड़े। उन्होंने डाक्टर साहब से पूछा-“डाक्टर साहब अगर मृतिका जलने से न मरती, तो क्या दम घुटने से मर सकती थी ?” डाक्टर साहब को मीलार्ड में सिद्धार्थ, वकील साहब में देवदत्त और खुद में हंस के दर्शन हुए। उन्होंने मीलार्ड के प्रश्न का पुछल्ला पकड़ा और कहा-“हां ! तब हो सकती थी।” वकील साहब को, मीलार्ड का इस तरह से बीच में कूदना रास न आया। उन्होंने डाक्टर साहब की तरफ दूसरा जाल फेंका-“डाक्टर साहब आपने मृत्यु का समय लगभग एक दिन पूर्व लिखा है। इसका मतलब, जलने और पोस्टमार्टम के बीच का समय लगभग एक दिन का था ?” डाक्टर साहब को समझ में आ गया, कि वकील साहब उन्हें उल्लू का पट्ठा समझ रहे हैं। उन्होंने कहा-“मरने और पोस्टमार्टम के बीच का समय एक दिन का है, न कि जलने और पोस्टमार्टम के बीच का।” दुश्मन जब आपके लड़ने की कला को समझ जाए, तो उसे हराना कठिन होता है, ये बात चतुर वकील साहब जानते थे। वकील साहब जान गए कि, डाक्टर साहब ने उनकी आक्रमण-कला के मर्म को जान लिया है और अब उन्हें फांसना कठिन था। उन्होंने जिरह वहीं खत्म कर दी।

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