मौरिस किंग ने अपनी पाठ्यपुस्तक ‘प्राइमरी सर्जरी’ में उल्लेख किया है, “गर्भवती महिलाओं को बचाना मूल रूप से मशीनों, प्रयोगशालाओं और कंप्यूटर का सवाल नहीं है। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945 से पहले उत्तर पश्चिमी यूरोप में), प्रसवपूर्व और मातृ मृत्यु दर कई बड़े अफ़्रीकी अस्पतालों की तुलना में बेहतर थी, उस समय सीज़ेरियन सेक्शन दर <1% थी, कोई एंटीबायोटिक्स, आधुनिक एनेस्थेटिक्स, सुरक्षित रक्त आधान नहीं थे , वैक्यूम एक्सट्रैक्टर्स, विश्वसनीय IV ऑक्सीटोसिन, एंटी-डी और एंटी-टेटनस इंजेक्शन, प्रोस्टाग्लैंडिंस, कंडोम के अलावा गर्भनिरोधक, कार्डियोटोकोग्राफ, अल्ट्रासाउंड, या डॉपलर मशीनें, या आधुनिक सामग्री बहुत कम थी। साक्ष्य आधारित ज्ञान- पोलियो, रेकाइटिस (विटामिन डी की कमी के कारण गंभीर पेल्विक विकृति) और (तब इलाज योग्य नहीं) सिफलिस आम थे। अंतर यह था कि सुविधाएं प्रदान की गई थीं और उन्हें पर्याप्त कर्मचारी मिले थे। अधिक आकर्षक नौकरियों के लिए कर्मचारियों का पलायन दुर्लभ था और वे अपने ही लोगों की पीड़ा को पहचानने के लिए पूजनीय थे। इसलिए ऐसे कर्मचारियों को प्रोत्साहित करें, और उनकी कार्य स्थितियों को बेहतर बनाने के लिए आप जो भी कर सकते हैं वह करें!”
आज गांव में हल्दीराम की भुजिया, बीड़ी , सिग्रेट, अंग्रेजी शराब पहुंच गयी है, लेकिन paracetamol के लिए अभी भी 15-20 किलोमीटर दूर जाना पड़ता है। शहर और सुपरस्पेशलिटी इलाज; और गांव एवम वंचित क्षेत्रों और प्राइमरी इलाज, के लिए अलग अलग कानून व्यवस्था करना बेहद जरूरी है। वरना हर इंसान छोटी मोटी जाँच और इलाज के लिए शहर आने के लिए मजबूर रहेगा। गाँव में सब्सिडी देने का मुख्य कारण है, ग्रामीणों की वित्तीय हानी झेलने की क्षमता बहुत कम होना। यह सब्सिडी सिर्फ किसान को ही नहीं बल्कि गाँव में चलने वाले सभी व्यवसायों के लिए जरूरी है।
भारत मैं चिकित्सा व्यवस्था को लेकर दो किस्म के कानून हैँ। पहला जो कॉर्पोरेट पर लागु होता है, और दूसरा जो चिकित्सा कर्मियों पर लागु होता है।
1) A) सरकारी नियम के अनुसार डॉक्टर के लिए एमबीबीएस और एमडी की परीक्षा पूरी होने के बाद 3-5 वर्ष का बॉन्ड है। क्या अन्य स्वास्थ्यकर्मी जैसे की नर्स, टेक्निशन, फार्मसिस्ट के लिए भी ऐसा कोई बॉन्ड है ? MBBS और MD पूरा होने के बाद 2-3 साल का bond लगाने से डॉक्टर गांव में अस्पताल खड़ा कर सकता है क्या ? उसके लिए उसे ग्रामीण या वंचित क्षेत्रों में कॉर्पोरेट के तर्ज पर अन्य स्वास्थ्य कर्मी एवं land और tax में सब्सिडी की जरूरत है।
B) ज्यादातर नर्स और technician गांव या वंचित क्षेत्रों से आते हैँ। महंगी पढ़ाई की फीस (catastrophic educational expenditure), और स्वतंत्र रूप से काम करने की अनुमती ना होने के कारण वो वापिस कभी अपने गांव नहीं लौट पाते, और गांव तक उनकी पढ़ाई का फायदा ही नहीं पहुँचता। इसे आप हमारी शिक्षा नीति की कमी भी बता सकते हैं। Lab technician वंचित क्षेत्रों में भी प्राइमरी लैब भी नहीं खोल सकते। नर्स MSc करने के बाद भी नर्स प्रैक्टिशनर की तरह काम नहीं कर सकती। सिर्फ किसी अस्पताल या डॉक्टर के आधीन हो कर ही काम करेंगे।
यह बहुत जरूरी है की technician को बेसिक lab खोलने की अनुमती हो, नर्स को एमएससी करने के बाद नर्स प्रैक्टिशनर की तरह काम करने की अनुमती हो। वरना गांव में जब lab और नर्स ही नहीं होंगे तो डॉक्टर किसी भी इलाज को कैसे कर सकता है।
2)
A) कॉर्पोरेट अस्पतालों को सरकार् द्वारा टैक्स पर छूट मिलती है। इसका कारण corporate social responsibility है। जिसमें गरीब मरीज़ों का लगभग मुफ्त इलाज किया जाता है। किन्तु, क्या स्वास्थ्य कर्मचारियों को गांव में सेवा देने के लिए टैक्स में कोई छूट का प्रावधान है ? नहीं। अगर कोई डॉक्टर हफ्ते में पांच दिन शहरे में अपने अस्पताल में काम करूँ, और दो दिन गांव में तो क्या उसे टैक्स मैं छूट मिलेगी ? नहीं। क्या यह सम्भव है की व्यक्ति जितना टैक्स दिल्ली और मुंबई जैसे शहरों में भर रहा है, उतना ही सुदूर गांव में भर सके ? नहीं। क्या जनरल फिजशियन और कार्डियोलॉजिस्ट बराबर टैक्स भर सकते हैँ ? नहीं। Primary care पर उतना टैक्स नहीं लगाया जा सकता जितना tertiary care पर। किन्तु टैक्स की इस नीति की वजह से आज सब सुपरस्पेशलिस्ट बन कर प्रमुख शहरों में ही काम करना चाहते हैँ।
B) कॉर्पोरेट अस्पतालों की आय का मुख्य स्त्रोत स्वास्थ्य बीमा है। स्वास्थ्य बीमा पर सरकार की तरफ से 100% आयकर में छूट है। जैसे स्वास्थ्य बीमा को टैक्स में सब्सिडी मिलती है, क्या सरकारी या प्राइवेट अस्पताल में हुए इलाज को टैक्स में सब्सिडी का कोई प्रावधान है ? नहीं। क्या आयुष संस्थानों और दवाइयों पर सब्सिडी का प्रावधान है ? नहीं। इसका मतलब सरकारी अस्पताल में इलाज पर खर्च पर कोई छूट नहीं है, मगर आप अगर स्वास्थ्य बीमा से इलाज कराएंगे तो इलाज पर छूट मिलेगी।
वर्ष 2023-24 में भारत में लगभग 90 बिलियन usd की स्वास्थ्य बीमा पर टैक्स सब्सिडी दी गई। अगर नहीं दी जाती तो शायद स्वास्थ्य बीमा की बिक्री इसकी एक-चौथाई भी ना होती।
मरीज को महंगे इलाज की जरूरत सिर्फ अस्पताल में ही नहीं होती। कई बीमारियां जैसे एक्सीडेंट के कारण विकलांगता, कैंसर, ulcerative colitis, crohn’s disease, rheumatoid arthritis, interstitial lung disease जैसी बीमारियों में मरीज घर पर ही रहता है, किंतु इलाज का खर्च बहुत ज्यादा होता है। ऐसे में अगर मरीज गांव से हो तो उसकी समस्याएं और ज्यादा बढ़ जाती है। ऐसे में क्या सिर्फ स्वास्थ्य बीमा को ही आयकर में सब्सिडी देना ही एक विकल्प रह जाता है ?
सरकारी और कुछ हद तक प्राइवेट अस्पतालों में हुए जरूरी या महंगे इलाज पर खर्च को भी टैक्स सब्सिडी मिलनी चाहिए, ताकि जो अस्पताल या क्लिनिक बीमा की क्षमता नहीं रखते हैँ, वह भी चलते रहें।
C) स्वास्थ्य बीमा केवल एलोपैथिक चिकित्सा को ही बढ़ावा देता है। आयुर्वेद एवं अन्य चिकित्सा पद्धीतियों के लिए कोई प्रावधान नहीं है। ऐसे में स्वास्थ्य बीमा को आयकर में सब्सिडी देना बाकी चिकित्सा की प्रणालियों के साथ पक्षपात है।
आज अमरीका जैसे देश जहां इलाज पूर्ण तरह स्वास्थ बीमा पर निर्भर है, वह भी इलाज के बढ़ते खर्चे से परेशान है। अमरीका में आधुनिकतम टेक्नोलॉजी है, मरीज़ों के अनुपात में अस्पताल और डॉक्टर सबसे ज्यादा हैँ, जनता के पास इलाज के लिए पैसा है और प्राइवेट और पब्लिक (medicare, medicaid) स्वास्थ्य बीमा है, परन्तु समाज में बीमारी पहले से ज्यादा बढ़ गयी है। इसका कारण है हरसंभव इलाज उपलब्ध होने के कारण अपने शरीर का ध्यान ना रखना (moral hazard)। इसका असर परोक्ष रूप में करदाता पर पड़ता है।
स्वास्थ्य बीमा बीमारी नहीं रोकता, सिर्फ बीमारी पर होने वाले व्यय को कम करता है। आज घर घर में बीमारी है। पहले के मुक़ाबले घर घर में कम उम्र में मधुमेह, उच्च रख्तचाप, हार्ट, lungs, kidney, liver के मरीज हैँ। फिर भी जंक फूड और नशे जैसे व्यसन समाज में कम होने की जगह बढ़ ही रहे हैं (moral hazard)।
3)
A) हमने कॉर्पोरेट को बड़े बड़े शहरों में सुपरस्पेशलिस्ट अस्पताल खोलने के लिए सब्सिडी पर जमीन आवंटित की है। जहां लीज़ पर जमीन मात्र 1 रुपय स्क्वायर मीटर है। किन्तु, यदि कोई स्वास्थ्यकर्मी अपने गांव या किसी वंचित आबादी में अस्पताल, क्लिनिक, या लैब खोलना चाहे तो वह स्थानीय रेट पर जमीन खरीदे या किराये पर ले कर काम शुरु करे। ऐसे में चिकत्सा कर्मियों के लिए ऐसे इलाकों में जहाँ आय कम या ना के बराबर होती है, वहाँ बुनियादी सेवाएँ दे पाना असंभव ही है। जमीन सस्ते पट्टे पर मिलने पर ही कार्य सम्भव है। जिस तरह खेती के लिए जमीन चिन्हित की जाती है, उसी प्रकार गांव में चिकित्सा, स्कूल के लिए भी जमीन चिन्हित करना आवश्यक है। जिसका कोई दुरूपयोग ना कर सके।
B) Clinical establishmemt act (CEA) में चाहे शहर हो, या क़स्बा, या गांव, एक ही कानून है। ऐकल डॉक्टर क्लिनिक है तो 50 वर्ग मीटर जगह होना जरूरी है। क्या यह हर जगह सम्भव है। यदि व्यक्ति का घर शहर के बींचो बीच बाजार में हो तो क्या वह अपने समुदाय की सेवा ना करके, किसी कस्बे में जा कर अपनी सेवाएं देगा, या फिर बहुत बड़ा उधार ले कर महंगा इलाज ही कर पाएगा। ऐसे में उसके डॉक्टर बनने का फायदा उसके समुदाय को तो पहुंच ही नहीं रहा। ऐसे समुदाय के लोगों को भी मजबूरी में इलाज के लिए घर से दूर इलाज के लिए जाना पड़ेगा।
C) करोना के दौरान एक mulltispeciality अस्पताल के ICU में आग लगने के कारण CEA के अंतर्गत फायर एनओसी सभी स्वास्थ्य संस्थानों के लिए अनिवार्य कर दिया गया था। क्या एकल डॉक्टर क्लिनिक और multispeciality अस्पताल का ICU बराबर होता है ? एक एकल डॉक्टर क्लिनिक में एक tubelight, एक पंखा, स्टेथोस्कोप और ब्लड प्रेशर नापने की मशीन से ज्यादा कुछ नहीं होता। क्या दोनो जगह आग लगने की संभावना बराबर है। क्या हमने बिजली के उपकरणों की दुकान और छोटे मोटे ढाबे जहां गैस के सिलेंडर रखे रहते हैं, वहां भी फायर एनओसी अनिवार्य किया ?
D) इसी तरह, medical pollution control committee मैं एकल डॉक्टर क्लिनिक से medical waste जमा करने के 1100 रुपये माह के लेती है। लेकिन बड़े अस्पतालों में यह दर, उसमें काम करने वाले डॉक्टरों के अनुपात में काफी कम है। हालांकि वहां icu और ऑपरेशन थिएटर जैसी सुविधाओं की वजह से medical waste कहीं ज्यादा है। उसी प्रकार, क्या गांव या कस्बे में lab या क्लिनिक खोलने वाला , जहां आय बहुत कम है, क्या इतना अतिरिक्त खर्चा उठा पाने में सक्षम है।
E) इसी तरह क्लीनिक रजिस्ट्रेशन सिर्फ 1 वर्ष के लिए दिया जाता है, हालांकि 5 वर्ष तक का प्रावधान है। हर वर्ष रजिस्ट्रेशन कराना कोई आसान काम नहीं है, खासकर जब इसकी व्यव्स्था ऑनलाइन न हो।
हर जगह सुरक्षा को कारण बताकर एक समान कानून नहीं बनाये जा सकते। जनता की भुगतान क्षमता पर भी ध्यान देना अति आवश्यक है। इसीलिए CEA पर पुनः विचार बहुत जरूरी है।
आज हम tertiary care हॉस्पिटल्स को csr, land, tax सब्सिडी दे रहे हैं, और primary care में होने वाले इलाज पर टैक्स लगा रहे हैं। क्या यह नीति बीमारी कम करेगी ? अगर हम primary care और underserved areas को सब्सिडी ना दे कर tertiary care और शहरों मे ही इन्वेस्टमेंट करते रहे तो कुछ ही वर्ष में भारत भी अमेरिका की तरह एक unsustainable हेल्थ care सिस्टम की वजह से catastrophic health expenditure का शिकार हो जायेगा। हम भारत में बढ़ते हुए धर्मान्तरण को लेकर चिंतित हैं, किंतु जो ग्रामीण गरीब आबादी है उनके पास दो ही विकल्प हैं, या तो इलाज न मिले, या फिर किसी मिशनरी अस्पताल में जा कर इलाज कराएं।










