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जगन्नाथ मंदिर तोड़ने जा रही औरंगजेब की सेना उल्टे पैर वापस क्यों लौट गई?
ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, मुगल बादशाह औरंगजेब ने 1686 में कटक के सूबेदार नासर खान को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था. लेकिन जैसे ही वो पुरी की ओर आगे बड़ा, कुछ ऐसा हुआ कि नासर खान अपनी सेना को लेकर वापस लौट गया. इसके बाद भी औरंगजेब ने मंदिर को नष्ट करने और रथ यात्रा को रोकने का एक और फरमान जारी किया. आइए जानते हैं पूरा किस्सा.

औरंगजेब ने 1686 में कटक के सूबेदार नासर खान को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था.
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मयंक गुप्ता | Updated on: Jul 28, 2024 | 9:18 AM
ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर अपने रत्न भंडार को लेकर चर्चा में है. 46 साल बाद मंदिर का रत्न भंडार खोला गया है. बताया जा रहा है कि मंदिर में 100 किलोग्राम से ज्यादा सोना और कीमती जेवरात मिले हैं. खजाना इतना सारा था कि 11 सदस्यों की कमेटी को इसे निकालने में 7 घंटे से भी ज्यादा का समय लग गया. मंदिर के अपार वैभव की वजह से इतिहास में जगन्नाथ मंदिर पर कई बार हमला हुआ. एक बार औरंगजेब ने भी मंदिर के खिलाफ आदेश दिया था. लेकिन हमला करने की बजाय उसके दूत ने ओडिशा के राजा से शांति समझौता कर लिया. आइए जानते हैं पूरा किस्सा.

गजपति राजा मुकुंद देव की 1568 ई. में मृत्यु के साथ ओडिशा बंगाल के अफगान शासकों के हाथों में चला गया. उनके समय में अराजकता अपने चरम पर थी. ऐसे में एक सेना प्रमुख के बेटे रामचन्द्र राउतराय ने खुरधा में मुख्यालय के साथ एक अलग राज्य बनाया. उन्होंने खुद को रामचन्द्र देव के नाम से ओडिशा का स्वतंत्र संप्रभु सम्राट घोषित किया. मुगल सम्राट अकबर की ओर से मान सिंह ने उन्हें जगन्नाथ मंदिर के वंशानुगत अधीक्षक के रूप में मान्यता भी दी. साथ ही रामचन्द्र को गजपति राजा की उपाधि का इस्तेमाल करने की अनुमति भी मिल गई. 1605 ई. में सम्राट अकबर की मृत्यु तक चीजें लगभग शांति से चलती रहीं.

औरंगजेब ने दिया मंदिर तोड़ने का हुक्म, सेना लौट गई वापस
अकबर के बेटे जहांगीर के गद्दी पर बैठते ही एक बार फिर मंदिर पर हमले होने शुरू हो गए. शाहजहां के दौर में वापस शांति लौट आई. लेकिन शाहजहां के मरने के बाद औरंगजेब के शासन में जगन्नाथ मंदिर के प्रबंधकों को कड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ा.

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ऐतिहासिक दस्तावेजों के मुताबिक, मुगल बादशाह औरंगजेब ने सबसे पहले 1686 में कटक के सूबेदार नासर खान को जगन्नाथ मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था. बताया जाता है कि नासर खान घोर हिंद विरोधी था. आदेश के अनुसार खान ने सैकड़ों मंदिरों को तोड़कर उनकी जगह मस्जिदे बनवाई. इसी मकसद से वो पुरी की ओर बड़े. श्री कृष्ण कथामृत मैगजीन के मुताबिक, पुरी पहुंचने से पहले नासर खान अपनी सेना के साथ रात को पास के एक गांव में रुका था. उस रात आसमान से गिरी बिजली ने नासर खान की सेना के कई हाथी- घोड़ों को मार डाला. औरंगजेब के दूत ने इसे भगवान जगन्नाथ का गुस्सा मानकर पुरी के मंदिर को तोड़ने की अपनी योजना रोक दी. उसने ओडिशा के राजा से शांति समझौता कर लिया.

नासर खान की नाकामी पर औरंगजेब तिलमिला गया. उसने 1691 में एक बार फिर मंदिर को तोड़ने और पारंपरिक रथ यात्रा को रोकने का आदेश जारी कर दिया. इस आक्रमण को अंजाम दिया उड़ीसा के नवाब इक्रम खान ने. उसन अपने भाई मस्तराम खान के साथ मिलकर मंदिर के इतिहास का 16वां हमला किया. उस समय गजपति दिव्यसिंह देव खुर्दा के राजा थे, जो मुगल सेना को रोकने में नाकाम साबित हुए. बताया जाता है कि जगन्नाथ मंदिर में घुसते ही उड़ीसा का नवाब सोने के सिंहासन पर चढ गया. मंदिर का सारा खजाना लूट लिया गया.

दिव्यसिंह देव ने दी मंदिर की मूर्तियां, लेकिन…
गजपति दिव्यसिंह देव ने लड़ाई रोकने के लिए इक्रम खान को रथ यात्रा के लकड़ी के घोड़े दे दिए. साथ ही लकड़ी की 4 मूर्तियां दी गई. जानकारी के मुताबिक, उन्होंने जो मूर्तियां दी थी वो नकली थी, ताकि इक्रम खान वो मूर्तियां औरंगजेब को दे और उसे लगे कि वो अपने मकसद में कामयाब हो गया है. राजा दिव्यसिंह देव ने असली मूर्तियां मंदिर के पीछे बने ‘बिमला मंदिर’ में रखवा दी.

मूर्तियां मिल जाने के बाद भी औरंगजेब को तसल्ली नहीं हुई. उसने अपने सेनापति को ओडिशा में भेजकर पारंपरिक रथ यात्रा को पूरी तरह से बंद करने का हुक्म दिया. सेना की तैनाती की वजह से श्रद्धालुओ ने पुरी आना बंद कर दिया. अगले 12 साल तक पुरी में त्योहारों पर पाबंदी लगी रही. स्थानीय लोगों को स्नान यात्रा, रुकमणी हरण जैसे त्योहार छिप-छिपाकर मनाने पड़े. वहीं, भगवान जगन्नाथ की पूजा भी गुप्त तरीके से होती रही.

औरंगजेब को आया सपना
एक दशक से ज्यादा समय तक त्योहारों पर पाबंदी लगने के बाद, राम दायिता गोस्वामी नाम का एक स्थानी महांत बादशाह की आज्ञा लेने के लिए उनके दरबार गया. संयोग से गोस्वामी के दरबार में आने से एक रात पहले औरंगजेब को सपने में अपने ईश्वर दिखाई दिए थे. ईश्वर ने औरंगजेब को रथ-यात्रा पर लगी पाबंदी को हटाने के लिए कहा था. अगली सुबह जब बादशाह इस बारे में सोच रहा था, तभी राम दायिता गोस्वामी दरबार में रथ-यात्रा की आज्ञा लेने आ गया.

औरंगजेब ने न सिर्फ रथ यात्रा की मंजूरी दी, बल्कि उसने मंदिर के लिए जमीन भी दान थी. ओडिशा के गर्वनर मुर्शिद कुली खान ने आधिकारिक तौर पर रथ यात्रा पर लगी पांबदी को 1703 में हटा दिया. उस साल गजपति दिव्यसिंह देव ने नए रथ बनवाए.
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