आख़िरी मलु ाकात
कोई रात यों तो अंधाधधंु सपनों से ़िाली नहीं जाती अब तक लोगों से ईश्वर से बात हुई,ऐसा सनु ता था,पर
एक रात मेरी भी ईश्वर से मलु ाकात हो गई I
ईश्वर सपने में आए ,बोले तू थोडा बहुत पेड लगाने की सोचता है पॉलीथथन की ख़िलाफ़त करता है, अच्छा
करताहै,कुछमझु सेपूँछू नाहोतोबताI
मैंने कहा प्रभु बताना ही है तो, ककतना जीवन शेष है, बता दो, में अपने आगे के काम वैसे ही प्लान कर लंू
l
ईश्वर बोले ये तो ननयम के ववरुद्ध है पर कुछ मदद कर सकता हूूँ जब आयु अंत नज़दीक होगा , तब कुछ इसका पता चल सके उस की तरकीब में दे सकता हूं,
एक घडी है मेरे पास है, जब ककसी से मलु ाकात करने जाओ या तम्ु हारे पास कोई आए, तो तमु मेरी दी घडी कलाईमेंपहनलेनाlअगरतमु मेंसेएककीआयुशेषनहींबचीहोगीतो इसआख़िरीमलु ाकातकोघडी पता कर लेगी, इसकी ववशेष ररंग टोन बजेगी. इससे तमु को पता लग जाएगा ककसी एक की आयु शेष नहीं है l दोनों में से कोई इसके बाद कभी एक दसू रे को उपलब्ध नहीं होगा
आूँख खलु ी तो सपना याद था हंसी आ गई , पर तककये पास देखा , वास्तव में कलाई घडी पडी थी , अब लगा क्या वास्तव में ईश्वर आए थे ,
अबमामलाउत्सकु तापर्ू णहोचकु ाथा,मैंनेघडीपहनहीली,मैंबचपनसेएकसलनू परबालकटानेमाूँ के साथ जाता था l तब में साल दो साल का था तो कुसी के हत्थों पर एक लकडी की पट्टी पर बैठा कर मेरे ससर की ऊूँ चाई इतनी की जाती जजससे ससर के बाल चाचे (नाई ) की पहुूँच में आ जाऐं l
मैं बच्चा था तब चचे १६ वषण के होंगे अब वद्ृ ध हो चले थे मेरे लायक बाल सही सही काट लेते थे वसै े चाय का ग्लास पकडने में हाथ हहलते थे I
आज ही घडी समली आज ही बाल कटाने जाना था घडी की जजज्ञासा साथ में थी और हुआ भी ऐसा उनसे समलते ही घडी की ररंग बज गई
मेरा ववश्वास पक्का हो रहा था , अभी तक उस सपने के अनसु ार सब हो रहा है तो यह बात भी सच ही होगी । किर क्या ये मलु ाकात “आख़िरी मलु ाकात है”
मैं उस हदन बाल कटाने के बाद उनसे गले समला I हर बार वो कहते थे चाय माूँगा दूँू और में माना कर देता, खाना खाना है भखू नहीं रहेगी , आज बोला चचे चाय नहीं मंगा रहे , वो उछल पडे चाय, मैं कहता थक गया तो कभी हां नहीं की , चाय आयी चचे ने हहलते हाथो से पी मैंने भी पी आराम से I आज जल्दी नहीं थी I उनके मूँहु को नज़र नछपा कर देख रहा था किर कुछ देर हाथ में हाथ सलया और चला आया , दोस्तों घडी परीक्षर् में सही ननकली,अगले हदन पता चला, चचे नहीं रहे , आगे भी ऐसा ही हुआ , ररंग के बाद पता होता मैं या वो एक कल को नहीं है तो मैं ववशेष भाव से उस शख़्स से समलता बहुत गौर से शक्ल देखता हाथ कुछ देर तक थामता, कुछ समय बाद मैंने घडी उतार के रख दी और अब जजससे समलता यही सोचकर ही
समलता जैसे आख़िरी मलु ाकात ही है परू े ध्यान से समलता, समय देता, गले लगाता हाथ थामता I
याद रखना जजससे भी समलो ऐसे ही समलो कक आख़िरी बार समल रहे हो , पता नहीं कौन सी मलु ाकात कौन
सी पोस्ट आख़िरी हो जाये डा राजीव “सागरी”










