List of 5 countries exempted from fmge after indian students mbbs degree for medical practice in india

दुनिया के 5 देश जहां से MBBS करने पर नहीं देना होगा FMGE, भारत में कर सकते हैं डायरेक्ट प्रैक्टिस
MCI Screening Test: विदेश में मेडिकल की पढ़ाई कर लौटने वाले भारतीय छात्रों को सीधे प्रैक्टिस की इजाजत नहीं होती है। उन्हें साबित करना होता कि वे प्रैक्टिस के काबिल हैं।
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Authored By: अनवर अंसारी
Updated: 4 Sept 2025, 3:02 am|नवभारतटाइम्स.कॉम
FMGE Exempted Countries: भारतीयों के बीच विदेश जाकर MBBS करना काफी ज्यादा पॉपुलर है। तभी हर साल हजारों की संख्या में स्टूडेंट्स आंखों में डॉक्टर बनने का सपना लिए विदेश जाते हैं। रूस से लेकर ईरान तक जैसे देशों में भारत से स्टूडेंट्स जाकर MBBS कर रहे हैं। भारतीयों को भले ही विदेश में मेडिकल डिग्री हासिल करने की इजाजत है, लेकिन भारत लौटने पर उन्हें एक लाइसेंसिंग एग्जाम देना पड़ता है। इसे ‘फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन’ (FMGE) के तौर पर जाना जाता है।

मेडिकल स्टूडेंट्स (Pexels)

FMGE करवाने की जिम्मेदारी ‘नेशनल मेडिकल कमीशन’ (NMC) की है। इस एग्जाम के जरिए ये सुनिश्चित होता है कि विदेश में ट्रेनिंग लेने वाले डॉक्टर भारत के स्टैंडर्ड को पूरा करते हैं। FMGE में पास होने वाले स्टूडेंट्स की संख्या काफी कम भी है। अच्छी बात ये है कि दुनिया के पांच देश ऐसे हैं, जहां से अगर आप मेडिकल डिग्री लेकर डॉक्टर बनते हैं, तो फिर आपको सीधे भारत में प्रैक्टिस की इजाजत मिल जाएगी। आपको FMGE एग्जाम भी नहीं देना होगा। आइए इन देशों के बारे में जानते हैं।

अमेरिका

इस लिस्ट में पहला नाम अमेरिका का है, जहां का मेडिकल एजुकेशन भारत से बिल्कुल अलग है। यहां पर MBBS की जगह डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (MD) की डिग्री दी जाती है। MD कोर्स में एडमिशन के लिए पहले चार वर्षीय ग्रेजुएशन करना पड़ता है। ये कोर्स पूरा होने में भी चार साल का समय लगता है। इस तरह अमेरिका में डॉक्टर बनने में आठ साल लग जाते हैं। यही वजह है कि भारत में अमेरिका से डॉक्टर बनकर आए छात्रों को प्रैक्टिस की इजाजत है। (Pexels)

ब्रिटेन

ब्रिटेन में भी भारत की तरह ही बैचलर ऑफ मेडिसिन, बैचलर ऑफ सर्जरी (MBBS) की डिग्री दी जाती है। ये कोर्स 5 से 6 साल का होता है, जिसमें शुरुआत से ही स्टूडेंट को क्लीनिकल ट्रेनिंग दी जाती है। भारतीय छात्र इसी वजह से ब्रिटेन में डॉक्टर बनना पसंद करते हैं। क्लीनिकल ट्रेनिंग के दौरान ज्यादातर समय स्टूडेंट्स को NHS (राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा) अस्पतालों में बिताना पड़ता है। (Pexels)

कनाडा

अमेरिका की तरह ही कनाडा में भी डॉक्टर बनने में आठ लग जाते हैं। सबसे पहले चार वर्षीय ग्रेजुएशन करना होता है। इसके बाद MCAT नाम का एक मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम देना पड़ता है, जिसके स्कोर के आधार पर MD कोर्स में दाखिला मिलता है। शुरुआती दो साल स्टूडेंट्स MD कोर्स में थ्योरी सीखते हैं और फिर आखिरी दो साल उन्हें क्लीनिकल ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वे मरीजों का इलाज करने में सक्षम हो सकें। (Pexels)

ऑस्ट्रेलिया

ऑस्ट्रेलिया में मेडिकल एजुकेशन भारत से काफी अलग है। यहां दो तरीके से मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन मिलता है। स्कूल से पास होने वाले स्टूडेंट्स को अंडरग्रेजुएट एंट्री मिलती है, जिसके तहत वे कॉलेज में 5-6 साल के बैचलर ऑफ मेडिकल स्टडीज/डॉक्टर ऑफ मेडिसिन (BMed/MD) प्रोग्राम की पढ़ाई करते हैं। ग्रेजुएट एंट्री के तहत बैचलर्स कर चुके स्टूडेंट्स को MD प्रोग्राम में दाखिला मिलता है। एडमिशन के लिए GAMSAT नाम का टेस्ट भी देना पड़ता है। (Pexels)
न्यूजीलैंड

न्यूजीलैंड में डॉक्टर बनने में 6 साल का वक्त लगता है। यहां पर भी मेडिकल कोर्स में एडमिशन के दौरान पहले स्टूडेंट्स को एक वर्षीय फाउंडेशन प्रोग्राम करना होता है। फिर प्री-क्लीनिकल और क्लीनिकल फेज आता है, जिसमें छात्रों को क्लीनिकल ट्रेनिंग मुहैया कराई जाती है। स्टूडेंट्स को अस्पतालों में काम करने का मौका मिलता है। यहां की मेडिकल डिग्री MBChB कहलाती है, जो MBBS के समान ही है। (Pexels)
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