वक्त आ गया है कि चिकित्सक अपना नज़रिया, अपना अंदाज़ बदले।

हर स्तर पर यथार्थपरक और पारदर्शी दृष्टिकोण अपनाना होगा।

अपनी अपनी फीस बढ़ाओ, सामने के दरवाजे से घुसो, बैक डोर एन्ट्री ठीक नहीं। जरूरतमंद के लिए उसे छोडना या कम करना हमेशा तुम्हारे हाथ में है।

समूहिक प्रक्टिस करो। हर चीज को डॉक्यूमेंट करो । पर्याप्त जॉचें करवाओ । सभी संम्भावनाओं पर विचार जरूरी हैं। सिर्फ क्लीनिक सेंन्स से काम करने का समय समाप्त हुआ। कानून तथ्यसापेक्ष है सत्य सापेक्ष नहीं।

अपने आप को एकेडेमीकली सशक्त रखो। सी.एम.ई./अपडेट / वर्कशाप / रीफ्रेशर कोर्सेज़ /कान्फेंस अटेन्ड करो।

सब काम खुद करने की कोई जरूरत नही, बॉट कर और बढि़या काम करो। वक्त स्पेशलिस्ट का है, जनरलिस्ट का नहीं। रेफरल बढाओ।

गम्भीर मरीजों को सघन चिकित्सा कक्ष में सधन चिकित्सा विशेषज्ञ की देखरेख में भेजो। तुम उसके एकमात्र सारथी नहीं हो। तुम से पहले भी कोई था और बाद में भी कोई होगा।

जहॉ तक सम्भव हो, ऐसे अस्पतालों में काम करने से बचो जहॉ साधन (व्यक्ति या सामान) पर्याप्त न हों। तुम्हारे बिना किसी गल्ती के उनका दोष भी तुम्हारे मथ्थे आयेगा।

प्रभावी संवाद और एमपैथी (समानुभूति) तनाव, झगड़े और मुकद्दमे बचाते हैं। यदि किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच रहे, तो ऐसा मरीज से साफ कहें। आयुर्विज्ञान का विस्तार असीमित हैं, किन्तु हम नितांत सीमित।

पर्याप्त इन्डेमीनिटी बीमा कवर जरूरी हैं।

आई.एम.ए, अपने मेडिकोलीगल सेल को काफ़ी मजबूत करे। हर सदस्य, हर माह/वर्ष उसमें कुछ धनराशि अलग से कन्टरीब्यूट करे।

नर्सिंगहोम भी अस्पतालों की तरह अपने यहाँ इनडोर में यूनिट सिस्टम लागू करे। हर मरीज़ को कई लोग मिल कर देंखें। चिकित्सको की गुणवत्ता और प्रमाणपत्र देख कर ही उन्हे प्रवेश दें।

अपने यहॉ भीड़ मत लगाऐ । सिर्फ उतने ही मरीज़ देखे जिनकें साथ न्याय कर सको। एपौइन्टमेंन्ट सिस्टम लागू करो। इन्तज़ारी में मरीज़ का समय खराब मत करवाओ।

दिमाग ठंडा रखो। रिएक्ट नहीं, रिस्पौन्ड करो।

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