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अस्पताल में किसी मरीज की मौत हो गई तो अस्पताल बन्द करेंगे !
भई इसे कहते हैं 'शौर्य'.
"दिल्ली सरकार" ने यह कर दिखाया। अब ऐसे ही एक एक करके सभी अस्पताल बन्द करवाओ ताकि कही भी कोई भी मरीज कभी भी मर नही पाएगा और डॉक्टरों द्वारा हो रही लूट भी पूरी तरह बन्द हो जाएगी । इतना ही नहीं, बल्कि सारे डॉक्टर भी भूखे मरेंगे…वाह भई वाह ! आखिर इतना पाप किया है डॉक्टरों ने, उनको सजा भी तो होनी चाहिए ना।
और केवल दिल्ली की ही नही, पश्चिम बंगाल में तृणमूल, कर्नाटक में कांग्रेस एवं महाराष्ट्र में बीजेपी की सरकारे भी यही धारणा रखती है। धन्य है वह देश, धन्य वो सरकारें ओर धन्य वहां की जनता।
*अब ये कल्याणकारी सरकारें बस इन चंद सवालों के जवाब दे तो बेहतर होगा।*
१. क्या अखबार में छपी खबर गलत निकले तो अखबार तुरंत बन्द करवाएंगे ?
२. कोई गुनहगार जेल से या थाने से भाग जाए, तो पूरा जेल या थाना बन्द करवाओगे ?
३. पूरा कूड़ा कचरा नहीं उठा पाए इसलिये Municipality बन्द करवाओगे ?
४. कारखाने में वर्कर की मौत हो जाए तो पूरा कारख़ाना बन्द करवाओगे ?
५. पार्टी में एक नेता भ्रष्ट साबित हो तो पूरी पार्टी बरखास्त कर उसका चुनाव लड़ना-लायसन्स बन्द करवाओगे ?
६. बस एक्सिडेंट में कोई एक मर जाए तो पूरी ट्रैवल कम्पनी बंद करवाओगे ?
४ स्कूल के Mid Day Meal में एक बार Poisoning होने पर स्कूल हमेशा बन्द करवाओगे ?
५. सुप्रीम कोर्ट द्वारा हाईकोर्ट फैसले को गलत करार देने पर हाईकोर्ट बंद करवाओगे ? ??
अगर इन सब सवालों का जवाब 'हां' है तो हम डॉक्टरों को कोई दिक्कत नहीं, कल से हम सब डाक्टरी बन्द करेंगे और अस्पताल को ताला लगाकर कोई दूसरा छोटामोटा काम कर लेंगे। दो वक्त की रोटी कमाने की इतनी अकल तो हर डाक्टर को होगी ही , तो फिर किसे शौक है इस तरह गुनहगार बनकर जीने का ?
मूलतः Allopathy मँहगी है। उसका खर्चा करने की आम लोगों की न क्षमता है ना इसकी जिम्मेवारी लेने की सरकार की औकात। मगर यह उपचार मुफ़्त मिले यह चाह सभी की है।
लोग स्वच्छ रहना चाहते नहीँ, आहार व्यायाम का ध्यान रखेंगे नहीं, वाहन चलाते कानून तोड़ते रहेंगे, स्वास्थ्य के लिए अलग बजट का प्रावधान नही करेंगे… इसका जिम्मा किसका है ?
उपचार सस्ते होने चाहिए ( फ्री मिले तो सबसे बेहतर), चौबीसों घण्टे मिलने चाहिए, हर एक मरीज शतप्रतिशत ठीक होना चाहिए ऐसी अतिरेकी एवं विवेकहीन मानसिकता में जी रहा है संभ्रांत भारतीय समाज।
तुम चाहे जितने बच्चे पैदा कर लो, हम संभाल लेंगे ये है सरकारी धारणा मगर इसके लिये पैसा कहाँ से आएगा ? जो बुद्धिमान है, ईमानदारी से नौकरी-धंधा करते है, प्रामाणिक होकर टैक्स भरते है उनसे ही ना ? उन्होंने होशियारी से, जिम्मेदारी निभाते हुए एक ही बच्चा पैदा करना है, और अनपढ़ गवारों के होंगे चार चार बच्चे। उन चारों का भार एक बच्चे वाले सहें – टेक्स भरभर क़े, यही यहाँ का समाजवाद है ?
ढेर सारे बच्चे पैदा करने वालों की जरूरत तो बहुत है भाइयों, आखिर यही तो बनेगे वोटर जो इलेक्शन जिताएंगे। उन्हें गरीब अनपढ़ रखना सिस्टम के लिए बेहतर होता है ना । १२५ करोड़ जनसंख्या पैदा कर रखी है, इतनी सारी आबादी है, सरकार तो स्वास्थ्य के विषय में इसी आधार पर हाथ ऊपर कर देती है।
कोई छोटी सी मांग लेकर लोगों को बहकाओ, जो शांत है-अपने अपने काम मे व्यस्त है उन्हें डराओ-धमकाओ यही उद्देश्य हो रहा है इन दिनों संगठनो का। कर्तव्य नहीँ – न्यूसेंस वेल्यू होनी चाहिये बस। हर गाँव हर शहर ऐसी गुंडागर्दी करने के लिए कारखाने बनते जा रहे है ये संगठन। तोड़पानी, सेटलमेंट, फिरौती और दहशत यही है इनके सिलेबस। तोड़ देंगे, गाड़ देंगे उखाड़ देंगे ये है इनकी नवनिर्मिती।
और TRP के लिए हाथ में घासलेट लिए मीडीयावाले तो बैठे है तैयार…सबसे तेज, सबसे आगे । निषेध, निंदा और हिंसा भड़कानेवाले विचार यही इनकी वाणी के है अलंकार। बताओ ऐसे में समाज में सुकून और शांति कहाँ से आएगी ?
तथाकथित विचारक और संपादक पालतू जानवरों की भांति अपने मालिकों की मर्जी सम्भाले हुए बैठे है। देख तो सब रहे हैं मगर हैं अतिदुर्बल।
खुद का मोटापा नहीँ सम्भाल सके और दुनिया को आयुर्वेद सिखाने बैठे है । इनको हार्ट अटैक आए तो क्या खाएंगे ये…सिर्फ तुलसी पत्ती ? आखिर ICU की ओर ही भागेंगे ना ? हाँ, मगर वहां से जिंदा लौटते ही इनके प्रवचन शुरू और उसमें बताएंगे Allopathy वालों की लूट की कहानियां। Cesarian करने वाले सभी डाक्टर सिर्फ पैसों के लिए ही ऑपरेशन करते है ऐसे लैक्चर देनेवाले जब खुद की बेटी अड़ जाती है तो -'डॉक्टर साब आप ही हमारे तारणहार, कुछ भी करो मगर हमे बचाओ' ऐसे गिडगिडाते नजर आते है।
पटाखें फोड़ेंगे, दारू पीएंगे, शादियों का, बर्थडे का जशन मनाएंगे, बड़े बड़े बैनरों पर खर्चा लुटाएंगे मगर Medical Insurance नहीं करवाएंगे। गहने खरीदते वक्त, मॉल में ब्रांडेड कपड़े खरीदते हुए चुपचाप पूरे पैसे दे देंगे मगर डॉक्टरों को इलाज के आखिर में जरूर कहेंगे -कुछ पैसे कम नही करेंगे डाक्टर साब ?
क्या ये गरीबी है ?
गुटका-तम्बाकू खाते वक्त, सिगरेट पीते वक्त, पानवाले को नही पूछेंगे 'इसके Side Effects क्या हैं ? दारू खरीदते वक्त यह सवाल नही पूछेंगे ' भैया इसका मेरे स्वास्थ्य पे बुरा असर तो नही होगा ? मगर डाक्टर ने दवाइयों की पर्ची पूरी लिखी भी नही कि पूछते…इसके कोई Side Effects तो नही होंगे ?
क्या यही है जागरूक जनता ?
घण्टों बिजली गुम होती है, सड़कें खराब, पीने का पानी तक पूरा नहीं मिलता और खूब सारी है जहरीली शराब, इलेक्शन खतम होते ही भूल जाते है नेता और आधे पेट सोती है कितनी सारी जनता, घूस के सिवाय सरकारी दफ्तरों में एक काम नही बनता। पुल टूट जाते है, भगदड़ो में बिखरती है लाशें, मरने पर भी एम्बुलेंस नसीब नही होती, तो जिंदा लोगों की क्या गिनती ?
हां, मगर यह सब हम सह लेते है। सिर्फ डॉक्टरों को ही मारपीट करते है। नेताओं के काफिले चलते है, बन्द किए रास्तों पर Ambulance को भी रुकना पड़ता है, अस्पताल पहुँचते पहुंचतेे देर हो जाती है, हम कुछ नही करते, हां मरीज को डॉक्टर बचा न पाए तो अस्पताल या डाक्टर का सर फोड़ देते है।
*विज्ञान विकास एवं टेक्नॉलॉजी के संशोधन हेतु आवश्यक प्रावधानों के बिना साइंटिस्ट-इंजीनियरों की नसलें विदेश चल बसी, उन्हें पढा़या भारत ने और तरक्की के फल मिले विदेशों को। अब इंटेलीजेंट डाक्टरों को भी ऐसे ही एक्सपोर्ट कराओ और खाते रहो जड़ी-बूटियां।* जात-धर्म के आधार पर जुलूस निकालते रहो और खूब खरीदो गरीब और लाचारों को चुनावी 'मार्केट' में ! हां और चिल्लाते रहना अपने आप में…मेरा भारत xxx !
*- मरीजों की सेवा में जीवन समर्पित करनेवाले एक भारतीय डॉक्टर के "मन' की बात" !*
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