हम डाक्टरों में हाहाकार मच गया है

। व्यवस्था डाक्टरों को "रास्ते" पर लाना चाहती है जो उनके लिए मेक्सिको पैदल जाने से भी ज्यादा कठिन साबित हो रहा है ,क्योंकि डाक्टरी सीख कर आदमी स्वतंत्र हो जाता है।डाक्टरी की कला ही ऐसी निराली है साहब, कि डाक्टर काबिल हो और चाहे, तो यमराज के दरवाजे पर अड़ जाए, या चाहे तो यमदूत का साक्षात अवतार बन जाए… भईया, इतनी घनघोर जादुई ताकत!! जिस सरकारी नौकरी के लिए एक आम भारतीय जान ले और दे सकता है,उसे डाक्टर जूते की नोक पर रखते हैं। तो सारे प्राशासनिक अधिकारियों को,नेताओं को हम डाक्टरों की ये स्वतंत्रता बड़ी खलती है। डाक्टर गण अपनी इस स्वतंत्रता का दुरुपयोग भी करते हैं, और कारोपोरेट जगत ने इसी स्वतंत्रता को भाँप कर उसका फायदा और घनघोर तरीको से उठाने के लिए झटपट अस्पतालों की श्रृंखला तैयार कर दी।सरकार भिगमंगी, सुरसा के मुँह की तरह बढती जनसंख्या को डाक्टर और चिकित्सा उपलब्ध कराने में वैसे ही लाचार थी।इधर पैसों का खेल और खिलाड़ी बढते गए।खींचतान में नेता,प्रशासन, कारोबारी और डाक्टर का चतुष्कोणीय मुकाबला चलता रहा।पहले डाक्टरों को उपभोक्ता सरंक्षण कानून में लाया गया, फिर भी बात नहीं बनी तो कुछ परिस्थितियों में क्रिमिनल आफेन्स के कानून बनाए गए।पर फिर भी ऊँगली पर नचाने की प्राशासनिक और नेताओं की इच्छा को डाक्टर धता बताते रहे। फिर 2005 में जड़ पर चोट करने की कवायद शुरू हुई। क्लिनिक, अस्पताल का बिल लाया गया, और डाक्टरों को प्रशासन के अंदर करने को धक्का दिया गया।ये स्वतंत्रता पर वो चोट थी,जिसने हमें थोड़ा तिलमिलाया, क्योंकि इसकी चोट आम डाक्टरों पर पड़ी,और कारोपोरेट बच गए। यानि अचानक चतुष्कोणीय खींचतान, कुश्ती में बदल गई, और कारोपोरेट भी प्रशासन और नेता की तरफ खड़े हो गए। डाक्टर अकेले पड़ गए, दुखी और चिड़चिड़े, पर क्या करते। चिकित्सक संघ, जाति बिरादरी के घमासान और व्यक्तिगत महात्वाकांक्षाओ के कारण चरणचाटुक संघ बन चुका था। पहली बार डाक्टरों को व्यवस्था झुका पाने में कामयाब लगने लगी थी।पर अभी भी कसर बाकी ही थी, क्योंकि न्यायालय ने एक हद तक डाक्टरों को दुश्मन नहीं माना था। फिर नई कवायद शुरु हुई। डाक्टर और अस्पताल को डकैत और आतंकवादी प्रोजेक्ट करने की। अब इस प्रोजेक्ट की घनघोर सफलता के बाद आजकल एक नया बिल लाया जा रहा है। इस बिल का कमाल ये है कि इसमें हर विधा के डाक्टरों को एलोपैथिक डाक्टर बना दिया जाएगा। स्पेशलिस्ट बनाने की प्राइवेट लिमिटेड फैक्ट्रियों को खोलने का भी प्लान है, जो स्पेशलिस्ट डाक्टरों की गुणवत्ता पर जरा भी ध्यान नहीं देगी। नतीजा, हर विभाग में स्पेशलिस्ट डाक्टरों की बाढ आएगी, और करोड़पतियों के बच्चे टाइमपास करने के लिए स्पेशलिस्ट बन जाएंगे।
सरकार को उम्मीद है कि इस प्रकार एकाएक ढेर सारे डाक्टर पैदा करके वो चिकित्सा में क्रांति ला देगी। पर मुझे सरकार के इस निर्णय में एक झोल लगता है। सरकार ये समझ रही है कि मुगले आजम के सेट पर सनी लिओनी भी मधुबाला का असर पैदा कर सकती है… तो गलतफहमी है।
हमारे डाक्टर मित्रों को चिंतित होने की जरूरत नहीं है।हम प्रतिभाशाली लोग हैं, कंपीटिशन निकाले, फिर बरसों अपने शिक्षकों की गालियाँ, प्यार और हाड़तोड़ मेहनत के बाद जो कला सीखी है, अगर वो ऐसे " पुल पाठ्यक्रम" में कोई चलते चलाते सीख लेगा, तो फिर हमारी जिंदगी बेकार ही गई।
हमारी मधुबाला वाली मुगलेआजम इस सरकारी सनी लिओनी वाले मुगलेआजम से किसी भी दिन बहुत भारी पड़ेगी।
बाकी आगे का लोग देखेंगे, हमारा वक्त साफ सुथरा निकल जाएगा, चिंता ना करें।

Dr Ashish Dehradoon

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