*तथ्य ही सत्य है।*
*कोई भी केंद्रीय एक्ट एक कानून होता है जिसका पालन अनिवार्य रूप से करना होता है।
*प्रादेशिक स्तर पर परिस्थितियों के हिसाब से इसमें कुछ बदलाव करने का अधिकार प्रादेशिक सरकार को होता है।
*उत्तराखंड IMA की एकमात्र मांग यही थी और है कि इस एक्ट के कुछ प्रावधानों को जनहित में संशोधन कर दिया जाय जिससे मरीजों व चिकित्सकों के आर्थिक बोझ को कम किया जा सके।
*माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखंड की एक्ट में संशोधन के लिए सहमति व आश्वासन के उपरांत उनके निर्देश पर स्वास्थ्य सचिव द्वारा कहे जाने पर IMA उत्तराखण्ड द्वारा संशोधित एक्ट का प्रारूप”उत्तराखंड हेल्थ केअर एक्ट”स्वास्थ्य सचिव को सौंप दिया गया।
*सितम्बर व दिसम्बर में IMA की प्रस्तावित स्वबन्दी को सरकार के मौखिक अनुरोध व आश्वासन के उपरांत एक नहीं 2 बार जनहित में टाला गया।
*हम संशोधित एक्ट लागू होने का इंतज़ार कर रहे थे कि इस बीच प्रशासन द्वारा IMA के चिकित्सकों को CEA में रजिस्ट्रेशन अविलम्ब करने,व न करने पर आर्थिक दंड व सीलबंद करने संबंधी नोटिस भेज दिए गए।
*मुख्यमंत्री जैसे गरिमामय पद द्वारा एक ओर आश्वासन और दूसरी ओर प्रशासन द्वारा नोटिस भिजवाने जैसे दोहरे मापदंडों के चलते सरकार के IMA के प्रति संदेहात्मक रवैये से क्षुब्ध व आक्रोशित चिकित्सकों को मजबूरन 15 फरवरी से समाधान होने तक स्वबन्दी की घोषणा करनी पड़ी।
*सरकार को चाहिए था कि वो माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष अपना निःस्वार्थ पक्ष रखती और IMA के प्रतिनिधिमंडल को बातचीत के लिए आमंत्रित करती।
*नोटिस भेजे जाने से ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सरकार जनता के सामने IMA के चिकित्सकों को तालाबंदी के लिए मजबूर कर गलत साबित करने का प्रयास कर रही है।
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*आज की PIL में हमारा पक्ष।*
*माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सरकारी तंत्र को जारी निर्देशों का संज्ञान लें।*
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*सामने से किया गया प्रहार ही हमारा हथियार है।*
*बिंदु C:समस्त चिकित्सा संस्थान मरीजों से केवल जरूरी जांचें कराएं अनावश्यक न कराएं
उपरोक्त निर्देश के अनुपालन के लिए किन लक्षणों/ बीमारियों में कौन सी जांच आवश्यक है और कौन सी अनावश्यक इसकी SOP(स्टैण्डर्ड ऑपरेटिव प्रोसीजर) सरकार द्वारा अविलम्ब जारी किया जाना जरूरी है ताकि उनका अनुपालन हो सके।
*(जांच चिकित्सक लिखता है संस्थान नहीं…संज्ञान लें।)*
*बिंदु D: समस्त सरकारी व निजी चिकित्सक आसानी से उपलब्ध जेनेरिक दवाइयां ही लिखें,ब्रांडेड के लिए बाध्य न करें।
उपरोक्त के सम्बंध में सरकार प्रदेश में सभी ब्रांडेड दवाइयों पर तत्काल प्रभाव से बैन लगाना सुनिश्चित करे।
चिकित्सक द्वारा जेनेरिक दवाई लिखने पर केमिस्ट कौन सी दवाई देगा,यह भी तय किया जाय।उस दवाई से उत्पन्न किसी भी परिस्थिति के लिए केमिस्ट,कंपनी व चिकित्सक में से कौन जिम्मेदार होगा यह भी तय हो जाना चाहिए।केमिस्ट ने किस कंपनी की दवाई दी कैसे पता चलेगा?उसका भी प्रावधान होना चाहिए।
*बिंदु :E: सरकार को निर्देश है कि वो विभिन्न जांचों व सर्जरी के रेट तय करे।
सरकार सरकारी रेट्स तय कर सकती है।प्राइवेट के रेट और सरकारी रेट किस प्रकार तय होंगे क्या मानक होंगे?
*(क्या सरकार वकीलों की फीस एक करने सम्बन्धी रेट भी तय करेगी?)*
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*समाधान।*
*सरकार के संशोधन के आश्वासन के बावजूद संशोधन न किये जाने से आक्रोशित IMA ने 15 फरवरी से जिस तालाबंदी की घोषणा की थी,सरकार के पहल न करने के अड़ियल रवैये से प्रतीत होता है कि सरकार जनता और चिकित्सकों के विरोध में है और जनता को यह दिखाना चाहती है कि चिकित्सक गलत हैं।वर्ना वह मरीजों पर आर्थिक बोझ बढ़ाने वाले एक्ट में संशोधन करती।माननीय उच्च न्यायालय को गुमराह न करती।अपना पक्ष तो रखती।
*(दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा।)*
*हम समस्त IMA उत्तराखंड के चिकित्सक लॉ BIDING सिटीजन के साथ साथ माननीय उच्च न्यायालय के आदेशों का पालन करते हुए प्रोविजनल रजिस्ट्रेशन करा तो लेंगे किन्तु अपने प्रतिष्ठान खोलने की स्तिथि में नहीं होंगे।सरकार का अविलम्ब हस्तक्षेप आवश्यक है।जनता को सरकार की लापरवाही के कारण हो रही असुविधा के लिए खेद है।