मारुति 800 vs मर्सीडीस in health care

मारुति 800के बजट में मर्सीडीस कैसे आएगी ?
———————
मारुति 800में कोई सेफ़्टी फ़ीचर नहीं था ।लेकिन अस्सी नब्बे के दशक में जब मारुति 800कार भारत के बाज़ार में आई तो उसने धूम मचा दी ।देखते ही देखते भारत के मध्यम वर्ग ने बजाज स्कूटर से मारुति की ऊँची उड़ान भरी और अपना कार का सपना पूरा किया ।भारत के माध्यम वर्ग की विकास यात्रा में यह एक महत्वपूर्ण पल था ।
सोचिए, उस समय यदि NABH जैसा कोई प्रोग्राम कारों पर भी लागू होता तो क्या होता – मारुति 800 में चार एयरबैग्ज़ ,चौड़े टायर,ऐंटी लॉक ब्रेकिंग सिस्टम ,रीयर कैमरा , फ़ोग लैम्प,कलिज़न अवॉइडिंग सिस्टम,पार्किंग सेन्सर्ज़ इत्यादि सभी सेफ़्टी फ़ीचर्ज़ लगाकर उसे मर्सीडीज जैसा बना दिया जाता और दो लाख वाली कार पंद्रह – बीस लाख की हो जाती ।कार थोड़ी सुरक्षित तो हो जाती लेकिन भारत के माध्यम वर्ग का कार का सपना अधूरा ही रह जाता ।
आज हेल्थ केयर में कुछ ऐसे ही प्रयोग किये जा रहे हैं ,बिना इस बात को समझे कि हर सेफ़्टी फ़ीचर,हर रेग्युलेशन ,हर नियम- क़ानून की एक क़ीमत होती है जिसे किसी न किसी को वहन करना ही होता है। भारत में ये क़ीमत न सरकार वहन करना चाहती है न मरीज़। अस्पतालों से अपेक्षा की जा रही है कि वे इस खर्च को वहन करें और सोमलिया के बजट में अमेरिका जैसी सुविधाएँ उपलब्ध करवाएँ ।उस अमेरिका जैसी जहां विश्व की सबसे महँगी चिकित्सा सेवाएँ होने के बावजूद xray जैसी सामान्य जाँच के लिए तीन -चार दिन और एमआरआई के लिए तीन- चार महीने प्रतीक्षा करनी होती है ।
मेडिकल विज्ञान में हर दवा को देने से पहले उसके risk benefit ratio का अध्ययन कर ये तय किया जाता है कि अमुक बीमारी में वो दवा दी जाये या नहीं ।कहीं ऐसा तो नहीं कि उस दवा के दुष्प्रभाव दवा के फ़ायदों से अधिक हों ।बेहतर होता हर नए नियम ,क़ानून और प्रोग्राम को लागू करने से पहले उसके risk benefit ratio का अध्ययन किया जाता।
एक और उदाहरण देखिए -विश्व के हर देश में, हर समाज में अपराध होते हैं लेकिन उन आपराधों को रोकने के लिए हर घर के सामने चार पुलीस वालों की तैनाती तर्क संगत उपाय नहीं ,इस तथ्य को एक पाँचवीं कक्षा का छात्र भी आसानी से समझ सकता है लेकिन इस देश के प्रबुद्ध नीति निर्माता हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था को इतना सुरक्षित बना देना चाहते हैं कि देश के अस्पतालों में मेडिकल दुर्घटना की सम्भावना शून्य हो जाए ।और इस काल्पनिक व अव्यवहारिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए इन्होंने CP act ,CEA,NABH इत्यादि पुलीस वाले हर अस्पताल के गेट पर तैनात कर दिए हैं ।देश की जनता इन पुलीस वालों को देखकर आह्लादित है बिना ये जाने कि इनका खर्च अंततः जनता को ही वहन करना है ।
मारुति से मर्सीडीज का सफ़र आसान नहीं होता ।

~डॉ राज शेखर यादव
फिजिशियन,ब्लॉगर

Leave a Reply

Fill in your details below or click an icon to log in:

WordPress.com Logo

You are commenting using your WordPress.com account. Log Out /  Change )

Facebook photo

You are commenting using your Facebook account. Log Out /  Change )

Connecting to %s

%d bloggers like this: