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रोज रोज मीडिया की दुत्कार ,कि डॉक्टर पेशेवर हो गये हैं! सरकार द्वारा डॉक्टर्स पर लगाम लगाने के सतत प्रयासों और नये नये कानूनों के कारण ,मेरा भी ह्रदय परिवर्तन हुआ और अपराध बोध से ग्रसित हो मेरे मन का विरेचन हुआ। मुझे हमारे पूर्वज चिकित्सकों ,चरक ,धन्वन्तरी और सुश्रुत की याद आने लगी! कैसे ये बिना किसी लोभ -लालच के जनता की सेवा करते रहते थे?और एक मैं हूँ कि मरीजों से उपचार के बदले फीस पाने की कामना करता हूँ!
जब से सरकार ने फीस निर्धारण की ठानी है तब से तो हिप्पोक्रेट्स की शपथ ने मेरे दिमाग को झिंझोड़ दिया है, और आत्मग्लानि के चलते मैंने अपनी क्लीनिक के बाहर लगे ग्लो sign बोर्ड को उतरवा कर अपने नाम की छोटी सी पट्टिका चश्पा कर दी है, ताकि मैं चिकित्सा सेवा के विज्ञापन करने के आरोप से बच सकूँ!
अपनी परामर्श टेबल पर फीस की पट्टिका देख कर मुझे अपने आप से घ्रणा होने लगी और मैंने उसे ता टेबल के दराज के हवाले कर दिया।
एक दानपेटी नुमा बक्सा क्लीनिक के बाहर रख दिया ,जिसमें मरीज अपनी श्रद्धानुसार कुछ धन अर्पित करते रहें जिससे मेरी दाल रोटी चल सके।
एक माह बाद जब बक्सा खोला तो मुझे लगा कि बक्से और ताले का खर्च भी नहीं निकला! मेरी पत्नी बड़े उत्साह से बक्से की तरफ निहार रही थी लेकिन जब उसने बक्से में विराजमान लक्ष्मी को देखा तो वह सौतिया डाह की तरह आक्रोशित हो गई। उसके आक्रोश की तीब्रता का अहसास मुझे चाय का पहला घूंट लेते ही हो गया था !!
फिर मैंने सोचा ,चलो अब मैं होम विजिट पर चला जाया करूँगा,जिससे कुछ तो राहत मिलेगी।वैसे भी मरीजों की सेवा करना अर्थ की कामना न करना ही मेरा धर्म है। मुझे मेडिसिन -सर्जरी सब भूल कर psm में पढ़ी बेयर फुट डॉक्टर की याद ताज़ा होने लगी थी।मैंने भी सोचा सरकार हमें बेयर फुट करे इससे पहले ही अपने आप को बेयर फुट करने में ही भलाई है!
मैंने जूतों के स्थान पर चमड़े की चप्पलें पहनी ,चमड़े का पुराना बैग जो फिल्मों डॉक्टर होम विजिट के लिए उपयोग करते थे,का इंतजाम किया और बन गया बेयर फुट डॉक्टर!!
बिल्ली के भाग्य से छींका टुटा वाली कहावत जल्दी ही चरितार्थ हो गई! मैंने देखा कि एक चमचमाती कार मेरी क्लीनिक के सामने रुकी,उसमें से एक भद्र पुरुष मंथर गति से चलते मेरे पास आये ,मेरी क्लीनिक और मेरा मुआइना किया -फिर बोले”वैसे तो हम डॉफलाने को दिखाते हैं लेकिन उनके पास भीड़ बहुत रहती है और वे होम विजिट भी नहीं करते इसलिए सोचा चलो आपको ही घर पर पापा को दिखाने ले चलते हैं!!”
मैं उनकी मेहरबानी से अभिभूत हो गया,साथ ही हिप्पोक्रेट की शपथ के बंधन से सेवा भाव से अभिभूत तो था ही सो तुरन्त चलने तैयार हो गया!
उन सज्जन ने कहा-डॉक्टर अपना वाहन ले चलिए ताकि मुझे आपको छोड़ने न आना पड़े।
मैंने बेयर फुट डॉ के हिसाब से साइकिल पर चलने का विचार किया लेकिन कुछ साइकिल पर,कुछ अपने घुटनों पर रहम कर स्कूटी पर जाने का निर्णय लिया!मैं जैसे ही बाहर स्कूटी की तरफ जाने लगा सज्जन ने कहा-डॉक्टर आपका बैग छूट गया है उसे ले लीजिये। मैंने फ़िल्मों में लोगों को डॉक्टर का बैग उठाते हुए देखा था वह स्वप्न धराशाई हो गया!!
बैग स्कूटी पर रखा और चलने तैयार।
ऊपरवाला मेहरबान था स्कूटी एक ही किक में स्टार्ट हो गई और में उनकी लक्सरी गाड़ी के पीछे पीछे चलने लगा!
जब उनके महल नुमा बंगले पर पहुंचा तो सबसे पहले शेरू ने भौंक कर और दरबान ने कुटिल मुस्कान से मेरा स्वागत किया। फिर जैसे ही मैं अंदर घुसा, शेरू ने मेरी चप्पलों से लेकर मेरे बैग तक का सूंघ कर मुआइना किया!
सज्जन पुरुष ने कहा डॉक्टर उसे ऐसा करने दीजिये वर्ना वो भौंकता ही रहेगा!!
मैंने तटस्थ भाव से अपने आपको शेरू के हवाले कर दिया। फिर शेरू का निरिक्षन ओके हो जाने के बाद मैं उन सज्जन के पीछे पीछे बैग हाथ में लिए उनके महलन नुमा घर के प्रवेशद्वार से होता हुआ एक पंचतारा होटल नुमा कमरे में दाखिल हुआ तो देखा ,एक आलिशान पलंग पर एक लहीम शहीम व्यक्ति लेटा है। ये उन सज्जन के पापा थे। पहले उन्होंने मुझे ऊपर से नीचे तक देखा फिर अपने बेटे को हिकारत भरी नजरों से देखा ,मानो कह रहे हों ये किस बेवकूफ डॉक्टर को पकड़ लाया है!!
मुझे हिप्पोक्रेट की ओथ के बाद अब हचिसन याद आने लगी थी और उसकी प्रक्रिया हिस्ट्री,पाल्पेसन,पर्कसन और auscaltation के क्रमबद्ध प्रारूप में मैंने मरीज के परिक्षन का विचार किया!
जब मैं हिस्ट्री ले रहा था तो वे महानुभाव कुछ इस तरह से जवाब दे रहे थे जैसे कोई थकाहारा व्यक्ति घर पहुँचने पर अपनी पत्नी के ऊल जलूल सवालों का जवाब देता है।
मैंने palpation के लिए जब उनके शारीर पर हाथ रखना चाहा तो ,पहले तो उनके झक सफ़ेद कुर्ते की सफेदी से डर गया और सोचने लगा”उनका कुर्ता मेरी कमीज से सफ़ेद कैसे”!
वे शायद मेरा असमंजस भांप गये थे सो उन्होंने ही अपना कुर्ता ऊपर सरका दिया!लेकिन palpation के नाम पर कुछ फीट मोटी वसा की परतों के अलावा कुछ महसूस नहीं हुआ।
मैंने परकशन किया ,लेकिन मेरी ऊँगली में उतना दम नहीं था कि कुछ नतीजा बता सकूँ। Auscultation में जरुर कुछ फुसफुसाहट अवश्य सुनाई दी।
मैंने अपने अनुभव के आधार पर कुछ दवाएँ एक पर्चे पर लिखी ,जिसे उन्होंने जिस अंदाज से मरोड़ कर तकिये के नीचे घुसाया ,मैं समझ गया कि मेरे पर्चे का अगला पड़ाव डस्ट बिन है।
मैं बाहर निकला सज्जन ने फीस का पूछा ,मैंने हिप्पोक्रेट को याद करते हुए कहा -जो आपकी मर्जी!
उन्होंने एक 100का नोट कीप the change अंदाज में थमाया और भीतर चले गये!मैं अपना बैग हाथ में थामे स्कूटी की ओर बढ़ा, शेरू ने गुर्रा कर और दरबान ने उसी तरह मुस्कुरा कर मुझे विदाई दी!”
सात दिन के बाद वही गाड़ी मेरी क्लीनिक के सामने फिर रुकी। मेरा दिल बल्लियों उछलने लगा ,मरीज को लाभ हुआ इसलिए followup में आया है। मैं अपनी पीठ खुद थपथपा पाता उससे पहले ही दोनों महापुरुष मेरे सामने आ खड़े हुए और लगभग डाँटते हुए बोले -ये कौन सी दवाएं लिखी थी जो इतनी मुश्किल से मिली!
मैंने कहा generik दवाइयाँ थी।
ये कैसी दवाएँ थी जो हाथ में लेते ही टूट जाती थी बदरंग सी अजीब सी गंध वाली!मैं शासन के आदेश का हवाला देते हुए बचाव की मुद्रा में आ चूका था!
वे बोले अच्छा हुआ कि हम डॉ नवीन नयनाभिराम के पास चले गये ,और उन्होंने हमारी सभी जाँचे करवा कर दवाइयाँ लिखी ,बिना जाँच के दवाई लिख कर आपने तो हमें मार ही डाला था!
मैंने डॉ नवीन नयनाभिराम का पर्चा देखा तब समझ में आया कि ये व्यापम जनित ,धनारक्षित, धन-संतरी ,लक्ष्मी पुत्र हैं। जो hutchisan पढ़ कर भूल गये और उन्हें केवल इन्वेस्टीगेशन ,इन्वेस्टीगेशन,इन्वेस्टीगेशनऔर इन्वेस्टीगेशन की प्रक्रिया ही आती है।
वे दोनों कुछ बड बड़ाते हुए चले गये शायद यह कहते हुए कि छोड़ दे रहे हैं नहीं तो consumer में घसीटते!!
इस घटना के बाद से अब मेरे मन में हिप्पोक्रेट के स्थान पर गब्बर सिंह ने घुसपैठ कर ली है। अब मैं हर शख्स से पूछता हूँ कि “होली कब है-कब है होली”? मुझे अपनी डिग्री या बेयरफुट या दोनों ही जलाने हैं।
अपनी आत्मा तो मैं जला नहीं सकता क्यों कि कृष्ण गीता में कह गये हैं-आत्मा अमर है!!
सरकार जरुर मरीज और डॉ के बीच मौजूद विश्वास की आत्मा जलाने के लिए सतत प्रयत्नशील है -देखें जला
पाती है या नहीं!!










